मैं एक नदी हूँ
Vishnu Prasad 'panchotiya'
शांति दूत हमेशा हर जगह होते हैं
दुनियां में मेरे सामने क्या क्या बदल गया।
अभिसप्त गधा
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
उसे अंधेरे का खौफ है इतना कि चाँद को भी सूरज कह दिया।
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
जिस दिन ना तुझे देखूं दिन भर पुकारती हूं।
इस ज़िंदगी में जो जरा आगे निकल गए
छन्द- वाचिक प्रमाणिका (मापनीयुक्त मात्रिक) वर्णिक मापनी – 12 12 12 12 अथवा – लगा लगा लगा लगा, पारंपरिक सूत्र – जभान राजभा लगा (अर्थात ज र ल गा)
जब नेत्रों से मेरे मोहित हो ही गए थे
आँखों मे नये रंग लगा कर तो देखिए