-संयुक्त परिवार अब कही रहा नही –
– संयुक्त परिवार अब कही रहा नही –
पहले जो प्रचलित थी सु प्रथाएं उनको आजकल के लोग भूल गए है जो संयुक्त परिवार के लोग होते है वे समाज में सम्मानिय और अनुकरणीय लोग होते है ,
उनकी समाज में एक अलग ही प्रतिष्ठा होती है पर आजकल वे कही कही ही देखने को मिलती है प्राय ऐसी सुप्रथाए शहरो में लुप्त हो गई है,
हमारे दादा परदादाओ के समय की बात करे तो 6 भाई एक साथ रहते थे ,
एक ही चूल्हे की रोटी खाते थे परिवार में मुखिया पिता जो बुजुर्ग होता था वो होता था,
किसी भी कार्य में उनका निर्णय सर्वोपरी होता था,
परिवार में किसी भी बात को लेकर विवाद नही होता था,
भाईयो की पत्नियां भी एक साथ में रहती थी,
न कोई मनमुटाव होता था आजकल की युवा पीढ़ी शादी करके अलग हो जाती है किराए पर रहती है,
आजकल की बहुए टीवी सीरियल देखकर उनके जैसा किरदार अपने में समाहित करने में लगी हुई है,
इसके कारण सांस बहु के रिश्तों में दरार पड़ी हुई है,
वे रील लाईफ को अपनी रियल लाईफ में आजमाने की फिराक में रहने के कारण परिवार टूट रहे है,
नवविवाहित लड़के शादी करके अपनी नव विवाहित पत्नी को लेकर अलग रहने लगे है जिससे संयुक्त पारिवारिक परंपरा का हास हो रहा है,
माता पिता मेहनत की कमाई से इक्कठा किया हुआ धन अपने पुत्र की शादी बड़े अरमानों के साथ की बहू आएगी तो सेवा करेंगी पर उन्हें क्या पता वे बहु उनके द्वारा जन्म दिए हुए बच्चे को उनसे दूर कर देंगी,
परिवार को तितर बितर कर देगी,
आजकल कही समझदार लड़के तो इस वजह से शादी करने से कतराते है,
अगर ऐसा ही हाल रहा तो आने वाला समय बहुत भयावह हो सकता है,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान