संभव क्यों नहीं
संभव क्यों नहीं
कामना है
न हो कोई सरहद
न हो कोई बाधा
भाषाओं की
विविधताओं की
जाति-पांतियों की
सभी दिलों में बहे
एक-सी सरिता
सबके कानों में गूंजें
एक-से तराने
सबके कदम उठें
और करें तय
बीच के फासले
यह सब
नहीं है असंभव
आदिकाल म में था
ऐसा ही
फिर आज संभव
क्यों नहीं?
-विनोद सिल्ला©