संभल जाओ जहाँ वालो,क़यामत आने वाली है
ईंट पत्थर के महलों से, जमी तुमने भर डाली है।
सम्हल जाओ जहाँ वालो,क़यामत आने वाली है।।
जिन्होंने काटकर जंगल, महल अपने बनाये हैं।
कि जैसे हाथ से खुद ही,चिता अपनी सजाये हैं।
सजा पायेगी वो एक दिन,जो पीढ़ी आने वाली है।।
सुना है पेड़ों के अंदरभी, तो एक जान होती है।
न काटो तुम हमे इंसा, वो रो रोकर ये कहती है।
सलामत हम अगर हैं, तो कभी हम छाँव भी देंगे।
खेलने तेरे बच्चों को, कभी हम ठाँव भी देंगे।
बना खुदगर्ज़ क्यों इंसा, जग में हम से खुशहाली है।।
अभी भी वक्त है “योगी”, सम्हलना है सम्हल जाओ।
न काटो बृक्ष धरती के, नये पौधे भी लगवाओ।
इन्हीं पेड़ों की हरियाली से,जीवन में हरियाली है।।