संभल के जीना ज़िन्दगी के पल दो पल
संभल के जीना ज़िन्दगी के पल दो पल
संभल के जीना कि ज़िन्दगी अभी बाकी है।
न खोना इन पलों को और न ढोना इन्हें
संभल के रहना कि बस वक्त ज़रा बाकी है।
गुज़र गयी है बहुत और बची है थोड़ी सी
इसे सँवारना खुद के लिए यह काफी है।
हसीन शाम है और रात होने भर को है
कसक से जीना इसे अब यही तो काफी है।
ठिठक कर रुको क़ायनात को देखो ज़रा
हसीं फ़िज़ाओं का दीदार अभी बाकी है।
हो न तन्हा अभी लम्हे बचे हैं जीने को
शब में ख्वाबों की बारात अभी बाकी है।
कहो समय से न और आज़माये हमें
रुके से कदमों में रफ्तार अभी बाकी है।
विपिन