*संभल कर चल* *
फिजाओं में जहर है संभल कर चल
अब टूटा कहर है संभल कर चल
मत दिखा होशियारी अपनी यहां
जब उसकी लहर है संभल कर चल
कदमों को रोक कुछ पलों के लिए
यह तेरा ही शहर है संभल कर चल
वक्त भी रुका है यह एहसास कर
अरे सूनी डगर है संभल कर चल
देश के सपूत भी चौकन्ने हो गए हैं
अब पैनी नजर है संभल कर चल
” प्रशांत शर्मा सरल’