संभलना होगा एक बार फिर …
इतना हाहाकर मचा है चारों ओर
ज़िंदगी फिर भी थम सी गई है
इतना कुछ बिखरा पड़ा है चारों ओर
ज़िंदगी फिर भी ख़ुद में सिमट सी गई है
एक ज़लज़ला सा आया सब कुछ हिला गया चारों ओर
इंसान फिर भी मूक सा खड़ा रह गया है !
किसी की माँग का सिंदूर , किसी मॉ का आँचल ,किसी के आँख का तारा
किसी की आस ,किसी का विश्वास , किसी के दिल का टुकड़ा
सब कुछ कितना टूटा पड़ा है चारों ओर
इंसान फिर भी उसे समेटने में लगा पड़ा है
उठना होगा हमें , साहस बटोरना होगा , सब को सहारा देना होगा ,
बुझे हुए चिराग़ों को रोशनी देनी होगी
ख़ुद ही कृष्णा ख़ुद ही अर्जुन बन कर चारों ओर
एक दूसरा कुरुक्षेत्र सम मौत का मंझर रोकना होगा
इंसान बन कर इंसानों की इंसानियत का भव्य अवतार पेश करना होगा