संबंध
कोई मुस्कुराया था कभी
ऐसे अज़ीम जहां में
कुछ याद ही नहीं
अर्सा बीत चला
खुलकर बतियाते
देखें उन्हें
माझी सा
यहां
वा-बस्ता कहां
शायद ही मिलता हो
कभी
गुमनाम तलखियों
में सुकुन ढूंढते
किसी को
यहां तो हर तरफ
डूबते खामोश
सितारे हैं
हर अल्फ़ाज़ में
में अजब रंगत थी कभी
जब आंखों में नूर
चमकता था
पर आज हर
आस्तिन में
वो मरकत कहां
जिनका उनसे
ऐतवार था
मनोज शर्मा