Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Sep 2024 · 6 min read

संबंध

अदिति की एक सगाई टूट चुकी थी , माँ पापा उसके लिए परेशान थे , उसने मणिपुर से हास्पीटल मैनेजमेंट किया था और सफ़दरजंग अस्पताल में अच्छी नौकरी पर थी । पिछली बार जिस लड़के से उसकी सगाई हुई थी , वह अमेरिका से इंजीनियरिंग में मास्टर्स करके आया था और यहाँ स्टार्ट अप जमा रहा था , उसके बड़े सपने थे , परिवार संपन्न था , लड़का दिखने में भी आकर्षक था , सब इस रिश्ते से खुश थे , और शादी की तारीख़ भी पक्की हो गई थी , परन्तु एक दिन अचानक अदिति ने माँ पापा पर जैसे बम गिराते हुए कहा कि वह इस लड़के से शादी नहीं करेगी ।
“ क्या हुआ, लड़ाई हो गई?” पापा ने पूछा ।
“ नहीं ।” अदिति ने शांति से कहा ।
“ तो क्या कोई और लड़की है ?” माँ ने पूछा ।
“ और लड़की … ! “ अदिति ने व्यंग्य से कहा ।
“ ड्रगज लेता है ?” पापा ने पूछा ।
“ नहीं , ऐसा कुछ नहीं है ।” अदिति ने साँस छोड़ते हुए कहा ।
“ तूं बतायगी नहीं तो हमें पता कैसे चलेगा ?” माँ ने कहा ।
“ वह बहुत बोर है ।” उसने मुट्ठी भींचते हुए कहा ।
“ अचानक बोर कैसे हो गया , इतने दिनों से तो उसे मिल रही हो ।” माँ ने कहा ।
अदिति बहुत देर तक चुप रही , फिर कहा , “ आपने मुझे कभी बताया कि मैं शादी के लिए किसी को पसंद करूँ तो उसमें क्या देखूँ ? आप पहले लड़के को मेरे सामने ले आए और मुझे कहा कि सबकुछ बहुत बढ़िया है , इससे पहले मेरा कभी कोई बवाय फ़्रैंड रहा नहीं , मैं आपकी बातों में आ गई ।” अदिति ने क्रोध दबाते हुए कहा ॥
“ तो सब बढ़िया ही तो है । “ माँ ने कहा ॥
पापा उठ कर चले गए , मानो आगे की ज़िम्मेदारी माँ की है ।
“ देखो पापा उठ कर चले गए ।” अदिति ने भीगी आँखों से कहा ।
“ हाँ तो बेटा , उन्हें लग होगा कि तूं उनके सामने शायद खुलकर बात नहीं कर पायेगी ।”
अदिति ने कुछ नहीं कहा , वह जानती थी , पापा हर बात माँ पर छोड़ देंगे , वे सोचते हैं , उनका काम है पैसा कमाना , और वे यह कर रहे हैं ।

दिन बीतते रहे , और धीरे-धीरे लगने लगा अदिति ने फिर से अपनी ज़िंदगी को नया रंग रूप दे डाला है । अब वह योगा करने लगी , रोज़ सुबह उठकर ध्यान करती , शाम को अस्पताल से घर आती तो खुश लगती , परन्तु माँ पापा उदास थे , उसकी उम्र बढ़ रही थी , और उनका मन आशंकाओं से भरा था ।

एक दिन अदिति ने अस्पताल से माँ को फ़ोन किया,
“ माँ , आज मेरा एक मित्र खाने पर आयेगा ।”
“ कौन सा मित्र?”
“ तुम्हारा होने वाला दामाद ।”

माँ के चेहरे पर यकायक ख़ुशी दौड़ गई, और वह तैयारी में जुट गई । पापा भी यह ख़बर पा आफ़िस से घर जल्दी आ गए ।

“ पापा , मम्मी, इससे मिलिये , ये हैं वंश ।” अदिति ने उत्साह से कहा ।
“ कहाँ मिले आप लोग?” पापा ने खाना खाते हुए पूछा ।
वंश हंस दिया , “ हुमायूँ की कब्र पर ।”
“ यानि ?”
“ यानि पापा , एक रविवार मैं वहाँ गई थी , यूँ ही कुछ फ़ोटो खींचने के लिए, तो पता चला , यह भी अपने बच्चों को लेकर वहाँ आए हुए हैं ।”
“ मैं समझा नहीं । पापा ने कहा ।
“ पापा ये स्कूल में पढ़ाते है ।”
“ स्कूल में ?”
“ जी । जब मैं चाइल्ड सायकालोजी में एम ए कर रहा था , तो मुझे लगा , मैं यही करना चाहता हूँ, फिर मैंने बी एंड किया और स्कूल में नौकरी कर ली ।”

बाक़ी का सारा खाना औपचारिकता में हुआ ।

वंश चला गया तो पापा ने अदिति को पैनी नज़रों से देखते हुए कहा , “ तुम्हें याद है न तुम एम बी बी एस डाक्टर हो ?”
“ हाँ , और यह भी याद है कि मुझे डाक्टर बनकर कुछ ख़ास ख़ुशी नहीं हुई थी , मेरी रूचि मैनेजमैंट में थी ।”
“ ठीक है जो करना है , करो । पर याद रखो संबंध बराबर वालों से ही निभता है ।”
“ और बराबर वाले क्या है पापा ?”
पाप ने लाचारी से माँ को देखा ,
“ बराबरी बेटा , रहन सहन में , विचारों में ।”
“ माँ , यदि विचारों में बराबरी न होती तो मैं उसे आप लोगों से मिलाती ही क्यों ?”
कुछ पल चुप्पी रही , अदिति ने फिर कहा , “ और रहन सहन सिर्फ़ फ़र्नीचर, घर , गाड़ी से तो नहीं बनता , उसके अंदर रहने वाले लोगों के जीवन मूल्यों से बनता है ।”

पापा मुस्करा दिये , उन्होंने अदिति के सिर पर हाथ रखते हुए कहा , “ तूं ठीक कह रही है , यह तेरी ज़िंदगी है , मैं बीच में नहीं आऊँगा ।” और वे जाने लगे ।

“ पापा , प्लीज़ आज बात को बीच में छोड़कर मत जाइये ।”
“ मैं बीच में छोड़कर नहीं जा रहा , मेरी तरफ़ से हां ‘ है ।”
“ पापा , जब तक मैं और मम्मी अपनी बात कह नहीं लेते , बात पूरी नहीं होती ।”
“ ठीक है । “ कहकर पापा मुस्करा कर सोफ़े पर बैठ गए ।
“ अब तुम कहो माँ ।”
“ लड़का तेरे से कम पढालिखा है , कम कमाता है । “ माँ ने अपना विचार रखते हुए कहा ।
“ पहली बात तो यह है कि कोई भी विषय दूसरे से कम नहीं होता , वह भी मास्टर्स है । दूसरी बात यह कि यदि मैं स्वयं को उसके बराबर समझती हूँ तो क्यों उम्मीद रखती हूँ वह मुझसे ज़्यादा कमाये ?”
मम्मी ने कहा ,” फिर भी यह ठीक नहीं लग रहा ।”
“ वह इसलिए क्योंकि पापा ने या आपने मुझसे यह नहीं पूछा कि मैंने वंश को ही क्यों चुना ?”
“ बताया तो सही तूने ।” पापा ने कहा ।
“ नहीं पापा, उससे भी गहरी एक वजह और है ।”
“ हुंहु ।” पापा ने कहा ।
“ पापा , जंगल में गुरीला , चिम्पांज़ी वग़ैरह को बच्चे पैदा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है , उनका बल मात्र उनकी मांसपेशियां हैं , वह किसी भी तरह से कमजोर दिखाई देने का ख़तरा नहीं मोल ले सकते , इसलिए वह अपने आँसू, भावनायें दबा जाते है। पुरुष भी यही करते आए हैं , इसलिए तूं लड़का है , रोना मत , इतना प्रभावी सूत्र रहा है , परन्तु अब हम बदल रहे हैं , शरीर से अधिक भावनाओं का बल, बुद्धि का बल हमें आकर्षित करता है ।”
“ और वंश तेरी भावनाओं को समझता है ।” पापा ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“ हां ।” अदिति ने हंसते हुए कहा ।
“ और इसीलिए तूने पहली सगाई तोड़ दी थी ?” माँ ने कहा ।
“ हाँ , मुझे लगता था वह भावनाओं की अभिव्यक्ति करना नहीं जानता , और उसके साथ शादी का अर्थ होता जीवन में कोई रस न होना, एक सूनापन होना ।”
“ और तेरे को लगता है , मैं तेरी माँ कीं भावनाओं को नहीं समझता ।” पापा ने शरारत से कहा ।
“ मैंने ऐसा कब कहा ?” अदिति ने हंसते हुए कहा ।
“ मैं सब समझता हूँ ।” पापा खड़े हो गए,” अब और नहीं बैठा जाता ।”
“ ठीक है जाइये ।” इस बार माँ ने मुस्कुराते हुए कहा ।
दरवाज़े पर पहुँच कर पापा ने मुड़कर कहा, “ तूं चिंता मत करना , तेरे जाने के बाद तेरी माँ को पूरी कंपनी दूँगा , सारी इमोशनल बातें करूँगा ।”
अदिति खिसक कर माँ के पास आ गई, और माँ कीं गोदी में सिर रखते हुए कहा ,” पापा कितने अच्छे हैं न माँ , यू आर वैरी लकी ।”
“ तुम भी उतनी ही क़िस्मत वाली हो , फ़िक्र मत करो ।” माँ ने मुस्कराकर अदिति के बाल सहलाते हुए कहा ।

—- शशि महाजन

20 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
.
.
Shwet Kumar Sinha
रात बीती चांदनी भी अब विदाई ले रही है।
रात बीती चांदनी भी अब विदाई ले रही है।
surenderpal vaidya
गर जानना चाहते हो
गर जानना चाहते हो
SATPAL CHAUHAN
फिर लौट आयीं हैं वो आंधियां, जिसने घर उजाड़ा था।
फिर लौट आयीं हैं वो आंधियां, जिसने घर उजाड़ा था।
Manisha Manjari
युवा संवाद
युवा संवाद
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
4207💐 *पूर्णिका* 💐
4207💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
Ramnath Sahu
मैं तो हमेशा बस मुस्कुरा के चलता हूॅ॑
मैं तो हमेशा बस मुस्कुरा के चलता हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
आप जीवित इसलिए नही है की आपको एक दिन मरना है बल्कि आपको यह ज
आप जीवित इसलिए नही है की आपको एक दिन मरना है बल्कि आपको यह ज
Rj Anand Prajapati
"जीवन की अंतिम यात्रा"
Pushpraj Anant
😊😊😊
😊😊😊
*प्रणय प्रभात*
आंगन की किलकारी बेटी,
आंगन की किलकारी बेटी,
Vindhya Prakash Mishra
कितनी मासूम
कितनी मासूम
हिमांशु Kulshrestha
दिल के दरवाज़े
दिल के दरवाज़े
Bodhisatva kastooriya
दिल का दर्द
दिल का दर्द
Dipak Kumar "Girja"
होंठ को छू लेता है सबसे पहले कुल्हड़
होंठ को छू लेता है सबसे पहले कुल्हड़
सिद्धार्थ गोरखपुरी
छंद मुक्त कविता : बचपन
छंद मुक्त कविता : बचपन
Sushila joshi
Fragrance of memories
Fragrance of memories
Bidyadhar Mantry
11-🌸-उम्मीद 🌸
11-🌸-उम्मीद 🌸
Mahima shukla
आज पुराने ख़त का, संदूक में द़ीद़ार होता है,
आज पुराने ख़त का, संदूक में द़ीद़ार होता है,
SPK Sachin Lodhi
मोहे वृंदावन न भायै, .....(ऊधो प्रसंग)
मोहे वृंदावन न भायै, .....(ऊधो प्रसंग)
पं अंजू पांडेय अश्रु
इजोत
इजोत
श्रीहर्ष आचार्य
सुबह सुबह घरवालो कि बाते सुनकर लगता है ऐसे
सुबह सुबह घरवालो कि बाते सुनकर लगता है ऐसे
ruby kumari
एक नासूर हो ही रहा दूसरा ज़ख्म फिर खा लिया।
एक नासूर हो ही रहा दूसरा ज़ख्म फिर खा लिया।
ओसमणी साहू 'ओश'
आज मेरिट मजाक है;
आज मेरिट मजाक है;
पंकज कुमार कर्ण
बस्ती जलते हाथ में खंजर देखा है,
बस्ती जलते हाथ में खंजर देखा है,
ज़ैद बलियावी
देश की पहचान
देश की पहचान
Dr fauzia Naseem shad
"हकीकत"
Dr. Kishan tandon kranti
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अनंतनाग में परचम फहरा गए
अनंतनाग में परचम फहरा गए
Harminder Kaur
Loading...