संबंधों में भावनाओं की अभिव्यक्ति
आलेख
संबंधों में भावनाओं की अभिव्यक्ति
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सामाजिक जीवन में भावनाओं का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है, लेकिन भावनात्मक अभिव्यक्तियों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सामाजिक, पारिवारिक, अथवा भावनात्मक रिश्तों में किसी में भी सिर्फ भावनाओं से संबंधों में प्रगाढ़ता बनी रहे यह लगभग नामुमकिन है। अपने भावनाओं की समय समय पर अभिव्यक्ति भी महत्वपूर्ण है।
पारिवारिक संबंधों में भी यदि अभिव्यक्ति का अभाव होगा, तो रिश्तों में वो प्रगाढ़ता बिल्कुल नहीं हो सकती, जो वास्तव में होनी चाहिए। इसी तरह भावनात्मक संबंधों में भावनाओं की अभिव्यक्ति पारिवारिक रिश्तों की तरह प्रगाढ़ और विश्वसनीय हो जाते हैं, जहां बहुत सारे रिश्ते ऐसे भी बन जाते हैं जिसकी कमी हमें पारिवारिक रिश्तों में महसूस होती है। सोशल मीडिया ने भी पारिवारिक ही नहीं बहुत से अनजाने अनदेखे रिश्तों को बनाने के अलावा मजबूती भी दी है,और बहुत सारे रिश्तों की कमी को पूरा करने की दिशा में बल देने वाला सिद्ध हो रहा है।
अभिव्यक्ति का महत्व इस तरह भी समझा जा सकता है कि अपने घर में काम करने वालों , उनके पारिवारिक सदस्यों, मित्रों या उनके परिवार, पड़ोसियों अथवा साथ काम करने वालों से या विभिन्न आयोजन में मुलाकात से भी नये संबंध बन ही जाते हैं। जिसे हम सिर्फ भावनाओं से मजबूत या पारदर्शी नहीं बना सकते, इसके लिए अभिव्यक्ति बहुत आवश्यक है।
प्रेमी जोड़े भी अभिव्यक्ति द्वारा ही अपने संबंधों और प्रेम को मजबूत करते हैं।
किसी कमजोर व्यक्ति को भी हम भावनात्मक अभिव्यक्ति के द्वारा भी अपना बना लेते हैं।
फेसबुकिया रिश्ते तो अभिव्यक्ति के द्वारा ही मजबूत होते हैं, फिर यथा समय पारिवारिक रिश्तों का न सिर्फ आभास कराते हैं बल्कि एक दूसरे से वास्तविक रुप से मिलते जुलते भी हैं। यही नहीं रिश्तों के अनुरूप ही समय पर अपने फ़र्ज़ भी निभाते हैं। आभासी दुनिया से जुड़े अनेक पुरुष, महिला आपस में भाई बहन के संबंधों को खून के रिश्तों की तरह निर्बाध निभा रहे हैं।
ऐसे में यह कहना ही उचित होगा कि संबंधों की प्रगाढ़ता के लिए भावनात्मक अभिव्यक्तियों का विशेष स्थान है। फिर रिश्ते पारिवारिक हो, भावनात्मक हों या व्यवहारिक।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक स्वरचित