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2 May 2023 · 6 min read

*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*

संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट
दिनांक 2 मई 2023 मंगलवार प्रातः 10:00 से 11:00 तक (रविवार अवकाश / मतदान के दिन चार मई को भी अवकाश)

आज अरण्यकांड दोहा संख्या 27 से अरण्य कांड संपूर्ण दोहा संख्या 46 तक का पाठ हुआ। कल किष्किंधाकांड आरंभ होगा।

कथा-सार

सीता जी को चुरा कर रावण ले जा रहा है। जटायु से उसे चुनौती मिलती है। शबरी से राम मिलते हैं और फिर शबरी के बताए हुए स्थान पंपा-सरोवर की ओर सुग्रीव से मिलने जाते हैं ।

कथा-क्रम

चोचन्हि मारि विदारेसि देही (अरण्यकांड चौपाई संख्या 28)
चोंच मारकर रावण की देह विदीर्ण करने का साहस तो केवल जटायु में ही था। जटायु के पास जितनी शक्ति थी, उसने उसका उपयोग राक्षसी आतंक को चुनौती देने के लिए किया। वह धन्य है, जो शक्तिशाली दशानन से पराजय सुनिश्चित होते हुए भी सत्य का पक्ष लेता है और असत्य से लड़-भिड़ जाता है। संसार में वह और उसका कार्य स्वर्ण-अक्षरों में लिखा जाता है। तभी तो भगवान राम ने जब सीता जी को ढूंढते हुए गिद्ध राज जटायु के दर्शन किए, तब जटायु की प्रशंसा में यह बात कही थी:-
परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुॅं जग दुर्लभ कछु नाहीं।। (अरण्यकांड चौपाई संख्या 30)
जटायु जैसे प्राणी जिनके मन में परहित बसा हुआ है और जो परहित के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर करने के लिए तत्पर हैं, उन्हें संसार में सर्वोत्तम गति प्राप्त होती है । जटायु को इसीलिए भगवान राम ने अपना परमधाम प्रदान किया।

मनुष्य के रूप में राम सीता के अपहरण के दुख का अनुभव कर रहे हैं। यह एक साधारण मनुष्य की साधारण मनोदशा है । रावण ने तपस्वी का वेश बनाकर सीता का अपहरण कर लिया है। लक्ष्मण सीता के कहने पर उन्हें कुटिया में अकेला छोड़कर भगवान राम की सहायता के लिए चले गए। सीता के अपहरण के बाद तुलसी लिखते हैं:-
भए विकल जस प्राकृत दीना (अरण्यकांड चौपाई संख्या 29)
अर्थात प्राकृत अथवा स्वाभाविक रूप से जैसी विकलता साधारण मनुष्य में होनी चाहिए, वैसी भगवान राम में दिखती है:-
हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी। तुम देखी सीता मृगनैनी।। (अरण्यकांड चौपाई संख्या 29)
भगवान राम मनुष्य के रूप में जन्म लेकर मनुष्य का व्यवहार कर रहे हैं ।अर्थात पक्षी पशु और भौंरों से भी पूछ रहे हैं कि क्या तुमने मृगनयनी सीता को देखा है ? इस प्रकार से जब तुलसी ने भगवान राम को देखा, तो लिख दिया :-
एहि विधि खोजत बिलपत स्वामी। मनहु महा विरही अति कामी।। पूर्ण काम राम सुख राशी। मनुज चरित कर अज अविनाशी (अरण्यकांड चौपाई संख्या 29)
अजन्मे और अविनाशी मनुष्य के रूप में जब राम ने जन्म ले लिया, तब वह एक विरह से पीड़ित साधारण मनुष्य की तरह अपनी पत्नी के वियोग में बिलख रहे हैं। राम की यही स्वाभाविकता तो रामकथा को प्राणवान बना देती है। अगर राम केवल चमत्कार का आश्रय लेते, केवल मायावी शक्तियों से ही लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते; तब मनुष्य रूप धारण करने की उपादेयता ही नहीं रहती।
विरह-वेदना से व्याकुल राम को प्रकृति का सौंदर्य और शोभा आनंद प्रदान करने के स्थान पर मन की विक्षुब्धता दे रही है। वह लक्ष्मण से कहते हैं :-
लछिमन देखु विपिन कइ शोभा। देखत केहि कर मन नहिं छोभा।। (अरण्य कांड चौपाई संख्या 36)
यहॉं बड़े आश्चर्य की बात है। राम कहते हैं विपिन अर्थात वन की शोभा को देखकर किस के मन में क्षोभ उत्पन्न नहीं होगा ? बात उल्टी है, क्योंकि वन की शोभा को देख कर तो मन में आनंद ही उत्पन्न होना चाहिए। लेकिन अगर व्यक्ति के मन में दुख, विरह, वेदना और पीड़ा है तब उसे संसार के सुखमय परिवेश को देखकर सुख के स्थान पर वेदना की तीव्रता अधिक जान पड़ती है। यह एक साधारण व्यक्ति का साधारण अनुभव है, जो तुलसी एक साधारण मनुष्य शरीरधारी राम के साथ होता हुआ दिखला रहे हैं।

अरण्यकांड की कथा के मध्य भगवान शंकर ने पार्वती से एक अद्भुत गूढ़ बात कह दी:-
उमा कहउॅं मैं अनुभव अपना। सत हरि भजन जगत सब सपना।। (अरण्यकांड चौपाई संख्या 38)
अर्थात शंकर जी कहते हैं कि हे पार्वती! मैं अपना अनुभव तुमको बता रहा हूं। सत्य तो केवल हरि का भजन है । यह जो संसार दीख रहा है, वह सब स्वप्न के समान है। शंकर जी के उपरोक्त कथन पर हम जितना अधिक चिंतन करेंगे, हमारे जीवन में संसार रूपी स्वप्न से बाहर आकर सत्य की प्राप्ति की अभिलाषा जागृत होती चली जाएगी। वास्तव में यह संसार स्वप्न ही तो है । जो आज हम देख रहे हैं, वह भविष्य में अतीत का स्वप्न होकर रह जाएगा। न परिवेश और न व्यक्ति आज के समान हमें कल दिख पाएंगे। जैसे व्यक्ति स्वप्न देखता है और सुबह होने पर उस सपने को यथार्थ में नहीं देखता; ठीक उसी प्रकार आज जो हम संसार देख रहे हैं, वह कल स्वप्न की तरह अतीत का विषय बन जाएगा । इस सत्य को समझना ही अध्यात्म का सार है ।

अध्यात्म की गहरी बातें रामचरितमानस में तब देखने को मिलती हैं, जब राम शबरी से उसके आश्रम में जाकर मिलते हैं भगवान राम शबरी से नवधा भक्ति अर्थात नौ प्रकार की भक्ति की बात कहते हैं। यह इस प्रकार हैं:-
प्रथम भगति संतन कर संगा। दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।। गुरु पद पंकज सेवा, तीसरि भगति अमान। चौथी भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।। मंत्र जाप मम दृढ़ विश्वासा। पंचम भजन सो वेद प्रकासा।। छठ दम शील बिरति बहु कर्मा। निरत निरंतर सज्जन धर्मा।। सातवॅं सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा।। आठवॅं जथा लाभ संतोषा। सपनेहुॅं नहिं देखइ परदोषा।। नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियॅं हर्ष न दीना।। (अरण्यकांड दोहा संख्या 34 एवं 35)
भगवान शबरी के स्वादिष्ट कंद मूल फल खाते हैं और प्रसन्न होकर शबरी को नौ प्रकार की भक्ति के बारे में बताते हैं।

पहली भक्ति संतो का संग है। दूसरी भक्ति ईश्वर की कथा के प्रसंग में रुचि है। तीसरी भक्ति अमान अर्थात अभिमान से रहित होकर गुरु के चरणों की सेवा है। चौथी भक्ति कपट को त्याग कर ईश्वर का गुणगान करना है। पॉंचवी भक्ति भगवान के नाम का स्मरण करने में दृढ़ विश्वास है। छठी भक्ति दम अर्थात इंद्रियों का निग्रह, शील अर्थात चरित्र तथा वैराग्य लेते हुए निरंतर सज्जनता के धर्म का अनुसरण है। सातवीं भक्ति संपूर्ण जगत को राममय देखना है तथा संतो को भगवान से भी अधिक महत्व प्रदान करना है । आठवीं भक्ति यह है कि जो मिल जाए, उसी में संतोष करना तथा सपने में भी दूसरों के दोषों को न देखना है। नवीं और अंतिम भक्ति सरल स्वभाव रखते हुए छल-विहीन जीवन बिताना है। ऐसा जीवन जो ईश्वर पर भरोसा करे और जिसमें कोई हर्ष और दीनता अथवा विषाद नहीं हो। इन नौ प्रकार की भक्ति का जीवन में आश्रय लेकर व्यक्ति जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है अर्थात परमात्मा का दर्शन उसे सुलभ हो जाएगा।

राम कहते हैं :-
मम दर्शन फल परम अनूपा। जीव पाव निज सहज स्वरूपा ।। (अरण्यकांड चौपाई संख्या 35)
अर्थात जो ईश्वर का दर्शन कर लेता है, वह अपने सहज स्वरूप को प्राप्त हो जाता है । इसका गहरा आध्यात्मिक अर्थ है क्योंकि परमात्मा को देखने के बाद अथवा अपने अंतःकरण में पहचान लेने के बाद व्यक्ति परमात्मा के समान ही सर्वव्यापक और निराकार रूप को प्राप्त कर लेता है । वह सब प्रकार की क्षुद्रताओं से परे चेतना के असीमित आकाश में प्रवेश कर जाता है। वह जीव के स्थान पर ब्रह्मरूप ही हो जाता है।
परमात्मा की कृपा से रामचरितमानस हमें “नवधा भक्ति” के माध्यम से ईश्वर के निराकार सर्वव्यापक रूप को जानने का अवसर उपलब्ध करा रहा है । इसे जानकर हम ब्रह्मरूप हो पाऍं, परमात्मा से इसी कृपा की हम आकांक्षा करते हैं ।
—————————————-
लेखक : रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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