संन्यास के दो पक्ष हैं
संन्यास के दो पक्ष हैं
प्रेम और ध्यान…
जहां संन्यास है,
वहीं प्रेम है, वहीं ध्यान है
ध्यान का अर्थ है
अकेले में आनंदित होना
एकांत में भी रसमग्न
हो पाना
प्रेम का अर्थ है
साथी के संसर्ग में
आनंदित होने की क्षमता
ध्यान , जैसे एक वाद्य
अकेले इस्तेमाल हो
वहीं..
प्रेम, जैसे एकाधिक वाद्यों का
एक साथ लयबध्य होना.
हिमांशु Kulshrestha