संन्यासी
साँसों के संग ,
रहते हरदम।
हरपल मस्तान ।
साँसों संग संन्यासी I
तोड़े मन मोही ।
संग, संन्याने जोड़े,
जिंदगी , हकीकत में ,
हमी सा दीखें।
वक्त शमाँ का
रखते हिसाब ,
कौन पल, लम्हें बेकार I
मोह बंधन नाशी ।
वो ,नित्य अभ्यासी।
कहूँ क्या इनकी सार ,
शब्द नहीं मेरे पास ।
अनुभव गामी , नित स्वभिमानी,
चलते रहते हरदम ,
सांसों , के संग
सच में संन्यासी _ डॉ. सीमा कुमारी , बिहार ( भागलपुर )
ये मेरी रचना समर्पित हैं संन्यासी को2007ई.
मेरे द्वारा रचित जसे मैं आज आप सबके समाने प्रकाशित कर रही हूँ।