संध्या गीत
****** संध्या-गीत ******
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संध्या शोभित सी है आई,
खुशी के पल पुलकित लाई।
आ जाओ दिल की तुम रानी,
याद करूँ दिल से दीवानी,
शाम सुहानी कब से आई।
संध्या शोभित सी है आई।
हर्षित हो जाता विचलित मन,
खिल जाता सोया-सोया मन,
सूर्यास्त – बेला चली आई।
संध्या शोभित सी है आई।
संध्या शीतल नाम सुहाना,
मस्ती में मस्त हो परवाना,
भँवरे दे रहे मिलन दुहाई।
संध्या शोभित सी है आई।
नैन – नीर से भरे हुए से,
स्वप्न दिल के हैं भरे हुए से,
जगाने जिनको लहर आई।
संध्या शोभित सी है आई।
मनसीरत मन संध्या-लीन,
दो के बाद हो जाए तीन,
प्रीत रश्म हृदय से निभाई।
संध्या शोभित सी है आई।
संध्या शोभित सी है आई।
खुशी के पल पुलकित लाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)