संदेशा
संदेशा
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दिनकर ने फैलाई आभा,
किरणें देखो जगमगाई।
स्वर्णिम चादर ओढ़ीं नदियाँ,
जीवन संदेशा ले आई।
धूप करे उर्जा संचार ,
इससे मिलता धरा को प्राण।
पशु- पादप सब हर्षाएं,
जीवन पाता यह संसार।
पृथ्वी करती सूर्य परिभ्रमण,
रितुओं का देखो परावर्तन।
ग्रीष्म में यह धूप सताए,
शरद रितु में हर मन को भाए।
दिन रात की अजब पहेली,
कभी दिन बड़े ,कभी रातें गहरी।
सुबह उदित हो साँझ ढल जाए,
सुख-दु:ख सी आए और जाए।
—मनीषा सहाय सुमन