संत
कुंडलिया
संत
( १)
ढाई अक्षर में लिखा , एक नाम है संत
जिसका गुण गाकर थका , वेद न पाया अंत
वेद न पाया अंत , भला हम क्या गायेंगे
उपमा इनके योग्य , कहाँ से ले आयेंगे
संतों का है काम , सदा निष्काम भलाई
गागर में है सिंधु , बंधुओं अक्षर ढाई
(२)
पापी को भी मिल गई , संतों की पग धूल
हैं वह बनकर महकता , इस दुनिया में फूल
इस दुनिया में फूल , बने डाँकू रत्नाकर
हो गए जनक विदेह , संत की संगति पाकर
शबरी को भी राम,मिल गए घट – घट व्यापी
संत कृपा से मुक्त , हो गए अगणित पापी
(३)
तेरे पद की संत जन , बस चुटकी भर धूल
भव रोगों से मुक्ति की , औषधि है अनुकूल
औषधि है अनुकूल , इसे जिसने अपनाया
उसने पाया मोक्ष , न जग में फिर से आया
है संतों का साथ , धन्य है जीवन मेरे
वर दो संत समाज , रहूँ चरणों में तेरे
(४)
बालक होते हैं सदा , छल प्रपंच से दूर
वे हैं केवल प्यार से , सुख पाते भरपूर
सुख पाते भरपूर , रंक से दूर न जाते
तथा धनी को देख , नहीं ज्यादे सुख पाते
वैसे भी जो संत , सत्य के होते पालक
वे भी रहते बंधु , जन्म भर बनकर बालक
(५)
भू पर तपकर चाहता , रवि अपना अधिकार
पर शशि शीतल बन गया , जीत लिया संसार
जीत लिया संसार , चांदनी सबको भाती
सबके उर में पैठ , सर्वदा सुख पहुंचाती
ऐसे ही जो प्यार , लुटाते सबके ऊपर
हे अवधू ! हैं संत , वही कहलाते भू पर
(६)
जिसमें जिस दिन से हुआ , अहम् भाव का अंत
वे उस दिन से हो गए , जग में सच्चे संत
जग में सच्चे संत , मानते जग को अपना
बनें जगत का दास , यही है उनका सपना
पर निज को कह संत , रंग बदले छिन-छिन में
वे हैं एक असंत , भरा यह अवगुण जिनमें
अवध किशोर ‘अवधू’
ग्राम – वरवाँ (रकबा राजा)
पोस्ट – लक्ष्मीपुर बाबू
जनपद – कुशीनगर (उत्तर प्रदेश )
पिन नंबर- 274407
मोबाइल नंबर -9918854285