* संतुलन *
” ना ज्यादा, ना कम
संतुलन की गठरी ही बेहतर होती है
अधिक हो तो हर चीज उबाऊ
और कम हो तो तृप्ति नहीं होती है
खुशहाल और सुखी जीवन संतुलन में ही निहित है
जीवन में संतुलन का अभाव
कश्ती को बीच भंवर में धकेल देता है
रिश्तो में ज्यादा प्रेम और लगाव खराब,
और कम हो तो संबंधों में मधुरता नहीं पनपती है,
सामान ना लादे अत्यधिक
नहीं तो बोझा ढोना पड़ेगा
और कम हो तो गुजारा नहीं चलेगा
गाड़ी तो चलती है जिंदगी की
वह संतुलन के पहिए से
आगे बढ़ती और दौड़ती हैं”