Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Oct 2024 · 11 min read

संतान

आखिर रवि को क्या हो गया? इतना खुशमिजाज और जिंदादिल लड़का अचानक इतना गुमसुम क्यों रहने लगा? आजकल वह बात-बात पर चिढ़ जाता है। मानसी देवी के मन में ऐसे कई सवाल उठ रहे थे। और उठें भी क्यों न? कौन माता-पिता अपनी संतान के दुख से दुखी नहीं होते?
एक गहरी सांस लेकर मानसी देवी, रवि की माँ, ने मन ही मन फैसला किया कि आज वह उससे साफ-साफ पूछेगी कि वह इस तरह के अटपटे विचार और व्यवहार का प्रदर्शन क्यों कर रहा है। क्या उसे अपने पिता से नाराजगी है या मुझसे ही किसी बात का रंज है? आखिर वह बताएगा तभी तो पता चलेगा
अचानक मानसी देवी के हृदय में कई तरह के अंतरद्वंद्व उभरने लगे। क्या उससे पूछना उचित होगा? क्या वह मेरी बात को गलत तरीके से न ले लेगा? कहीं ऐसा न हो कि पूछने पर रवि कहे, “यह मेरी जिंदगी है, मुझे अपने तरीके से जीने दो, मेरी जिंदगी में ताक-झांक करना बंद करो,” जैसा कि आजकल के बच्चे प्रायः बोलते हैं। वह अपने पुत्र के इस तरह के रवैए से काफी उलझन में थी।
रवि की उम्र अभी ज्यादा नहीं हुई थी। एक साल पहले उसका दाखिला कटक के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था। रवि तेज़ विद्यार्थी था, लेकिन उस कॉलेज के फर्स्ट सेमेस्टर की परीक्षा में उसका प्रदर्शन बिल्कुल संतोषजनक नहीं था। दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा में वह अपीयर तो हुआ, लेकिन कुछ पेपर देने के बाद उसने परीक्षा छोड़ दी, जिसकी जानकारी न मां मानसी देवी को थी, न पिता अभय रंजन को।
इस बार जब से वह सेकेंड सेमेस्टर की परीक्षा के बाद घर आया था, तब से उसका चाल-ढाल बिल्कुल बदल गया था, और इससे माँ-बाप दोनों ही चिंतित थे।
उस शाम जब रवि घर आया, वह चुपचाप बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया, जबकि बाहर मां बैठी हुई थी। रवि के अंदर जाते ही कुछ देर बाद मानसी देवी उसके कमरे में आकर बोली, “कुछ खाओगे बेटा, कुछ बना दूं?”
रवि बेरुखी से बोला, “मुझे भूख नहीं है।” इतना कहकर रवि ने अपना लैपटॉप खोला और कुछ देखने लगा। पहले से ही माँ व्यथित थी, उसकी बेरुखी ने उसकी पीड़ा को और बढ़ा दिया।
“इस बार जब से आए हो, तुम्हारा व्यवहार काफी बदला हुआ है, क्या बात है?” मानसी ने पूछा।
रवि अचानक बम की तरह फट पड़ा, “मुझे शांति से रहने दो, अब मुझे कटक नहीं जाना है, पापा से बोल देना।” यह सुनते ही मानसी देवी को जैसे बिजली का झटका लग गया। गुस्सा भी आया, लेकिन उन्होंने इसे दबा लिया। करे तो क्या करे, रवि उनका एकलौता बेटा जो ठहरा। फिर एक बार हिम्मत जुटाकर बोलीं, “बेटा, मैं तेरी मां हूं। तुम मुझे पराई क्यों समझते हो? जो भी समस्या है, उसका समाधान ढूंढा जाएगा। हर समस्या अपने समाधान के साथ आती है। जो भी समस्या होगी, हम सब मिल-जुलकर उसका हल निकालेंगे। बताओ तो सही।”
“मुझे पढ़ाई में मन नहीं लगता है, अब मैं आगे नहीं पढ़ूंगा।” रवि ने स्पष्ट कहा।
अभी मां-बेटे की बातचीत चल ही रही थी कि तभी ऑफिस से अभय रंजन जी भी आ गए। उनके आते ही दोनों ने बातचीत बंद कर दी। लेकिन अभय रंजन जी हल्के-फुल्के सुन चुके थे कि रवि पढ़ाई के लिए इस बार नहीं जाना चाहता।
“क्या बात हो रही थी मां-बेटे में?” सुनकर भी अनजान बनते हुए पिता ने पूछा।
“कुछ खास नहीं, ऐसे ही।” इतना कहकर मानसी देवी रसोई में भोजन बनाने चली गईं और रवि लैपटॉप पर कुछ देखने लगा। अभय रंजन जी भी ऑफिस से थके-मांदे आए थे, इसलिए आराम करने चले गए अपने बिछावन पर।
रात में जब तीनों एक साथ खाना खा रहे थे, उस समय भी रवि बहुत मुँह फुलाए बैठा था और अल्पभाषी बना हुआ था। अक्सर मन में घाव होता है तो मुँह चुप हो जाता है, और वाचाल भी मितभाषी बन जाता है। रवि खाना खाकर चुपचाप अपने कमरे में चला गया। दोनों पति-पत्नी ने इशारों में कुछ बात की और वे भी अपने शयन कक्ष में आ गए।
बिछावन पर आने के बाद अभय रंजन जी ने बातचीत शुरू की। उन्होंने मानसी से पूछा, “डिनर टेबल पर रवि बहुत गुमसुम था। क्या हुआ है? उस समय रवि क्या कह रहा था?”
“क्या बताऊं जी, उस दिन जब आप आए थे, हमलोग चुप हो गए थे। सोच रही थी कि अगर आप जान जाएंगे, तो रवि को कुछ उल्टा-पुल्टा सुना देंगे। वह कह रहा है कि उसका मन पढ़ाई से उचट गया है और अब वह कटक नहीं जाना चाहता। रवि आपसे बहुत डरता है, इसलिए आपसे कुछ नहीं कहता।”
मानसी की बात सुनने के बाद अभय रंजन कुछ देर तक एक चिंतक की तरह सोचते रहे। फिर बोले, “मुझे लगता है कि इंस्टीट्यूट में रवि ने कोई गड़बड़ की है, इसलिए वह अब वहां नहीं जाना चाहता।”
“हो सकता है, लेकिन वह कुछ बताए तो सही।”
“बताएगा कैसे? मुझे खुद कटक जाकर वहां के डायरेक्टर से जानकारी लेनी होगी।”
“यह तो सही है, लेकिन क्या रवि इस पर कुछ कहेगा नहीं?”
“क्या हमें उसके बोलने के डर से सच्चाई का पता नहीं लगाना चाहिए?”
“नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रही हूं। सच्चाई का पता तो लगाना ही पड़ेगा, तभी तो रवि के न जाने का असली कारण पता चलेगा।”
“ठीक है, कल मैं वहां जाकर पता लगाता हूं। तुम इसे गुप्त रखना और रवि को बताना कि मैं किसी ऑफिशियल टूर पर जा रहा हूं।”
“हां, यह ठीक है। अब आप सो जाइए, रात ज्यादा हो गई है। नींद उचट जाने के बाद नींद लगने में परेशानी होगी।”
“ठीक है, अब तुम भी सो जाओ।” इतना कहकर दोनों सोने का प्रयास करने लगे और सो गए।
सुबह उठकर अभय रंजन नहा-धोकर कटक के लिए निकल पड़े। ग्यारह बजे तक वे डायरेक्टर के ऑफिस पहुंच गए। उस समय तक डायरेक्टर साहब नहीं आए थे। आधे घंटे बाद वे आए और सबसे पहले अभय रंजन से ही मिले। जब उन्होंने बताया कि वे रवि के पिता हैं, तो डायरेक्टर साहब बोले, “अच्छा, आप ही हैं उसके पिता।”
“सर, मुझे बताइए, रवि का परफॉर्मेंस कैसा है?”
डायरेक्टर ने कहा, “आपका बेटा यहां बिल्कुल ठीक परफॉर्म नहीं कर रहा है। पहले सेमेस्टर की परीक्षा में उसने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। दूसरे सेमेस्टर में, उसने दो पेपर दिए, लेकिन बाकी की परीक्षाओं में उपस्थित ही नहीं हुआ। बार-बार उसे संभलने का मौका दिया गया, लेकिन उसने कोई सुधार नहीं किया। मैनेजमेंट को मजबूर होकर उसे उसकी लापरवाही और गलत आचरण के कारण एक्सपेल करना पड़ा। आपको इस बारे में एक लेटर भी भेजा गया है, जो शायद आपको मिल गया होगा।”

“मुझे कोई लेटर नहीं मिला है, सर। लेकिन वह तो बहुत अच्छा था पढ़ाई में, मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इतना अच्छा बच्चा अचानक कैसे बदल गया।”
डायरेक्टर ने कहा, “मुझे जो शिकायतें मिली हैं, उनके अनुसार आपके बेटे का यहां किसी लड़की से अफेयर चल रहा था।”
यह सुनते ही अभय रंजन जी के पैर के नीचे से जमीन खिसक गई। कोई भी माता-पिता अपने बच्चे की बुराई सुन सकते हैं, लेकिन आचरण से संबंधित शिकायत सुनकर वे तिलमिला जाते हैं। अभय रंजन जी के साथ भी यही हुआ।
“अब इसका समाधान क्या है?” उन्होंने पूछा।
डायरेक्टर ने कहा, “अब यहां कोई गुंजाइश नहीं है। आपको वही करना होगा जो आप सही समझें।”
“ठीक है, थैंक यू।” इतना कहकर अभय रंजन जी डायरेक्टर के ऑफिस से एक हारे हुए जुआरी की तरह बाहर निकल गए। उनका कदम उठाना भारी हो गया था, जैसे कर्ण के द्वारा कुंती के अनुरोध को ठुकराने के बाद कुंती का कदम नहीं उठ पा रहा था।
अभय रंजन जी डायरेक्टर ऑफिस से सीधे स्टेशन आ गए। वहां पता चला कि पुरी की ओर जाने वाली ट्रेन को आने में कम-से-कम दो घंटे लगेंगे। उन्होंने पुरी का टिकट लेकर कुछ हल्का जलपान किया और प्लेटफार्म पर गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगे।
हालांकि वहां से बस की भी सुविधा थी, लेकिन वे बस से यात्रा करना पसंद नहीं करते थे। प्लेटफार्म पर इधर-उधर देखने के बाद एक खाली बेंच नजर आया, उस पर जाकर बैठ गए। मन दुखी था और तन भी थक चुका था। दुख के समय चिंतन की गति तेज हो जाती है। वे सोचने लगे कि कैसे रवि को सही रास्ते पर लाया जाए। डांट-फटकार उचित नहीं होगी, उसे प्यार से समझाना होगा। सारी बात बताने पर उसकी मां भी चिंतित हो जाएगी। अब क्या करूं, कैसे करूं, परिवार के डगमगाते भविष्य को कैसे सुरक्षित करूं…

तभी उनके कानों में आवाज आई, “कृपया, यात्रीगण ध्यान दें। पारादीप से चलकर भुवनेश्वर, कटक के रास्ते पुरी जाने वाली पारादीप-पुरी इंटरसिटी एक्सप्रेस प्लेटफार्म संख्या तीन पर कुछ ही मिनटों में आ रही है।” वे प्लेटफार्म नंबर एक पर बैठे थे। जल्दी-जल्दी प्लेटफार्म संख्या तीन पर गए। कुछ मिनटों बाद गाड़ी आई और वे उसमें सवार हो गए।
जब अभय रंजन घर पहुंचे, तब रात के ग्यारह बज चुके थे। रवि अपने कमरे में अधजगा पड़ा था। पत्नी अपने कमरे में बिना खाए अपने पति के आने का इंतजार कर रही थी। कॉल बेल बजते ही पत्नी उठी और दरवाजा खोला। अभय रंजन जी अंदर आए और बिस्तर पर कपड़े बदलने लगे। पत्नी ने बाहर का दरवाजा बंद किया, लाइट बंद की, और वापस कमरे में चली गई।
अभय रंजन जी का चेहरा उतरा हुआ था। वे बिल्कुल चुप थे। चुप्पी तोड़ने के लिए पत्नी ने पूछा, “क्या हुआ, कुछ पता चला?”
“हां।”
“क्या पता चला?”
“थोड़ा सा दम लेने दो, फिर बताता हूं।”
“खाना लगा दूं?”
“हां, हां, लगाओ। खाना खाकर आराम से सारी बातें बताऊंगा।”
मानसी देवी को कटक की पूरी जानकारी जानने की उत्सुकता थी, लेकिन थके-मांदे पति के मना करने पर उन्होंने आगे कुछ नहीं पूछा। दोनों ने साथ में खाना खाया। रवि पहले ही खा चुका था। खाना खाकर अभय रंजन जी बिस्तर पर लेट गए, और पत्नी ने सभी खिड़की-दरवाजे बंद करके लाइट बंद की और पति के पास आकर बैठ गईं।
रवि को नींद नहीं आ रही थी। जब अभय रंजन जी आए, तब रवि को पता भी नहीं चला था। मां के कमरे के नजदीक आकर रवि ने पूछा, “पापा अभी तक नहीं आए हैं?”
“आ गए, खाना खाकर सो रहे हैं,” मां ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा।
“तुम अभी तक जाग रही हो?”
“हां, मां। क्या करूं, आज नींद नहीं आ रही।”
“ज्यादा मत सोचो, बेटा। तुम्हारी इच्छा होगी तो वहां पढ़ने के लिए जाना, और इच्छा नहीं होगी तो मत जाना। मैं तुम्हारे पापा से इस पर बात करूंगी। अब जा, आराम से सो जा।”
रवि अपने कमरे में चला गया और बिस्तर पर जाकर लेट गया। उसके मन में विचार आने लगे, “मैं कितना बुरा हूँ और मेरे मां-बाप मुझ पर कितना विश्वास करते हैं। अगर माँ-पिताजी के दबाव में वहाँ चला भी जाऊँ, तो भी मुझसे कोर्स पूरा नहीं होगा। जिस लड़की ने मेरी ज़िंदगी को तहस-नहस कर दिया है, उसे देखकर मेरी पढ़ाई फिर से नहीं हो सकेगी। मुझे लगता है कि क्यों न साफ-साफ बता दूं कि अब आप लोग मुझे दोबारा वहाँ पढ़ने के लिए न भेजें। वहाँ के अलावा जहन्नुम में भी पढ़ने भेज दीजिए, तो भी अच्छा रिजल्ट लाकर दिखा दूंगा।” सोचते-सोचते रवि सो गया।
जब रवि को समझाकर मानसी देवी अपने कमरे में गईं, तब तक अभय रंजन जी जाग रहे थे। जब पत्नी बत्ती बुझाने चली, तब अभय रंजन जी बोले, “बत्ती अभी न बुझाइए। आइए, हमलोग आपस में कुछ विचार-विमर्श करते हैं।”
मानसी देवी तो इस क्षण का बेसब्री से इंतजार कर रही थीं, तुरंत आकर पलंग पर उनके बगल में बैठ गईं। अभय रंजन जी बोले, “क्या करें, कुछ समझ में नहीं आता है।”
“वहाँ क्या आपको पता चला?” मानसी देवी ने पूछा।
“डायरेक्टर साहब के अनुसार रवि का किसी लड़की से प्रेम प्रसंग चल रहा था। उसी के चक्कर में यह बार-बार फेल होता रहा। इसलिए इंस्टीट्यूट से रवि का नाम काट दिया गया है। अब वह वहाँ नहीं पढ़ सकता।”
“ऐसा क्या कर दिया है रवि ने!” मानसी देवी ने हैरानी से कहा।
“उन बातों को छोड़िए, अब यह सोचिए कि रवि को सही रास्ते पर लाने का उपाय क्या है?”
“उपाय तो आप मुझसे बेहतर सोच सकते हैं।”
“मैं सोच रहा हूँ कि रवि का किसी दूसरे अच्छे इंस्टीट्यूट में नाम लिखवा दिया जाए।”
“मेरे ख्याल से भी यही बेहतर रहेगा। सुबह में ही बात कर लूंगी।”
“ठीक है, बात करो, लेकिन यह नहीं बताना कि मैं उसके इंस्टीट्यूट में गया था।”
दोनों विचार-विमर्श करके सोने की कोशिश करने लगे। धीरे-धीरे दोनों की आँखें लग गईं और वे सो गए।
सुबह, रवि ने उठते ही माँ से पूछा, “माँ, कल पापा बहुत देर से आए थे। क्या वो ऑफिस से कहीं बाहर चले गए थे?”
“हाँ, कुछ जरूरी काम था। पापा रात में कह रहे थे कि तुम्हारा मन कटक जाने का नहीं है, तो पूछ रहे थे कि क्या तुम रांची में पढ़ने जाओगे?”
“तुमने क्या कहा, माँ?”
“मैंने कहा कि आप ही उनसे पूछ लीजिएगा।”
“माँ, तुम बोल देना, मैं जरूर जाऊँगा। वहाँ रहकर पढ़ने में कोई आपत्ति नहीं है।” बहुत दिनों बाद रवि के चेहरे पर खुशी दिखाई दी, जो माँ की नजर से नहीं बची।
उधर, पापा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। उनका चेहरा उतरा हुआ था, वे काफी चिंतित दिख रहे थे। दिन भर के थके हुए भी थे। रवि उनके पास जाकर बोला, “पापा, आपको कुछ हुआ है क्या? आप आज मुझसे नाराज हैं क्या?”
“जिसका बेटा पढ़ाई करने के लिए अपनी माँ से अनिक्षा जाहिर करेगा, उसका पापा खुश कैसे रह सकता है, बेटा।”
“पापा, मुझे पढ़ाई से अनिक्षा नहीं है। मुझे सिर्फ उस जगह से अनिक्षा हो गई है। मैं वहाँ जाकर भी पढ़ाई नहीं कर पाऊंगा। वहाँ का माहौल मुझे अच्छा नहीं लगता।”
“कहीं और रहकर पढ़ना पसंद करोगे?”
“क्यों नहीं, पापा। उस जगह के अलावा कहीं भी नाम लिखवा दीजिए। मैं जी-जान लगाकर पढ़ाई करूंगा।”
“तो, रांची में बात करूं?”
“हाँ, पापा, कीजिए।”
“ठीक है, देखता हूँ। अभी ऑफिस जा रहा हूँ। वहीं पर किसी से पूछताछ करूंगा।”
“ठीक है पापा, मैं आपसे वादा करता हूँ कि आज से आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा।”
“वाह! शाबाश बेटा, मुझे भी विश्वास है कि तुम आगे कोई गलत काम नहीं करोगे।” यह कहते हुए अभय रंजन जी ऑफिस के लिए चल दिए।
रांची के बी.आई.टी. में रवि का तीसरा साल बीत चुका था, लेकिन उसकी कोई शिकायत कभी भी अभय रंजन जी और मानसी देवी को नहीं मिली। इंस्टीट्यूट में उसका परफॉर्मेंस बहुत अच्छा चल रहा था। बीच-बीच में जब अभय रंजन जी वहाँ जाते और वहाँ के स्टाफ से मिलते, तो सभी रवि की प्रशंसा करते थे। वहाँ के डायरेक्टर भी रवि के बारे में अच्छा फीडबैक देते थे।
उस दिन दोनों पति-पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब रवि ने फोन पर मम्मी और पापा को बताया कि वह बी.टेक की फाइनल परीक्षा में इंस्टीट्यूट भर में सबसे अव्वल आया है और उसका प्लेसमेंट भी बहुत अच्छे पैकेज पर हुआ है।
जब रवि ने यह बताया कि डायरेक्टर सर ने कहा है कि कन्वोकेशन के मौके पर अपने पेरेंट्स को भी आने के लिए पहले से कह देना, और डायरेक्टर सर आप दोनों को विशेष रूप से उस अवसर पर इन्वाइट करेंगे, तो अभय रंजन और मानसी देवी ने अपने आराध्य देव को धन्यवाद देते हुए कहा, “हे ईश्वर, आपको लाख-लाख शुक्रिया।”

Language: Hindi
35 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from manorath maharaj
View all
You may also like:
शब की रातों में जब चाँद पर तारे हो जाते हैं,
शब की रातों में जब चाँद पर तारे हो जाते हैं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"अदावत"
Dr. Kishan tandon kranti
, गुज़रा इक ज़माना
, गुज़रा इक ज़माना
Surinder blackpen
क्या लिखूँ....???
क्या लिखूँ....???
Kanchan Khanna
लोककवि रामचरन गुप्त के पूर्व में चीन-पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के दौरान रचे गये युद्ध-गीत
लोककवि रामचरन गुप्त के पूर्व में चीन-पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के दौरान रचे गये युद्ध-गीत
कवि रमेशराज
4212💐 *पूर्णिका* 💐
4212💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
ख़ामोशी है चेहरे पर लेकिन
ख़ामोशी है चेहरे पर लेकिन
पूर्वार्थ
बचपन
बचपन
Vedha Singh
हो सके तो मीठा बोलना
हो सके तो मीठा बोलना
Sonam Puneet Dubey
कुछ बिखरे ख्यालों का मजमा
कुछ बिखरे ख्यालों का मजमा
Dr. Harvinder Singh Bakshi
आ जा अब तो शाम का मंज़र भी धुँधला हो गया
आ जा अब तो शाम का मंज़र भी धुँधला हो गया
Sandeep Thakur
बदनाम
बदनाम
Neeraj Agarwal
आइये झांकते हैं कुछ अतीत में
आइये झांकते हैं कुछ अतीत में
Atul "Krishn"
#लघुकथा
#लघुकथा
*प्रणय प्रभात*
नारी- शक्ति आह्वान
नारी- शक्ति आह्वान
Shyam Sundar Subramanian
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
कब तक छुपाकर रखोगे मेरे नाम को
Manoj Mahato
धुंध छाई उजाला अमर चाहिए।
धुंध छाई उजाला अमर चाहिए।
Rajesh Tiwari
कौन हूँ मैं ?
कौन हूँ मैं ?
पूनम झा 'प्रथमा'
*हिंदू कहने में गर्व करो, यह ऋषियों का पावन झरना (राधेश्यामी
*हिंदू कहने में गर्व करो, यह ऋषियों का पावन झरना (राधेश्यामी
Ravi Prakash
*लोकमैथिली_हाइकु*
*लोकमैथिली_हाइकु*
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
Shankar Dwivedi's Poems
Shankar Dwivedi's Poems
Shankar Dwivedi (1941-81)
मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी
मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*खोटा था अपना सिक्का*
*खोटा था अपना सिक्का*
Poonam Matia
लड़का पति बनने के लिए दहेज मांगता है चलो ठीक है
लड़का पति बनने के लिए दहेज मांगता है चलो ठीक है
शेखर सिंह
बीते कल की क्या कहें,
बीते कल की क्या कहें,
sushil sarna
पलटे नहीं थे हमने
पलटे नहीं थे हमने
Dr fauzia Naseem shad
बुंदेली हास्य मुकरियां
बुंदेली हास्य मुकरियां
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Santosh kumar Miri
आज की हकीकत
आज की हकीकत
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...
हर एक सब का हिसाब कोंन रक्खे...
कवि दीपक बवेजा
Loading...