संजीवनी
तुम
कितनी सुंदर लगती हो
जब छा जाती हो
इस अनंत असीम गगन में
अपनी मद भरी चांदनी लेकर
मैं भी प्राया
सुप्त छोड़ सारे जग को
आ जाता हूं तुम्हारे सदृश
ताकि
इस विक्षोभ भरे जीवन से
कुछ क्षण
विलग कर
तुम्हें समर्पित कर सकूं
और प्रतिदान में इसके
पा सकूं
वह शीतल चांदनी
कारण है जो
इन प्रफुल्लित कमल तड़ागो की
और है हर अशांत मन की संजीवनी ।