संघर्ष
************* संघर्ष **********
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तप कर जैसे खूब निखरता है सोना
संघर्षों के बल पर ही मिलता बिछौना
डरा हुआ सहमा पीछे रह जाता है
संघर्षशील मनुष्य मंजिल पाता है
अवरोधक हैं बहुत, आगे न बढ़ पाएं
समय बीत जाने पर रहते पछताए
बार – बार अवसर कभी नहीं मिलते है
जो ना भुनाए , हाथ पीछे मलते हैं
सदियों से यह बात बताई जाती है
प्रयासों से बाजी जीती जाती है
मन के हारे हार , सदा हो जाती है
मनसीरत मन जीत,जीत हो जाती है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)