संघर्ष
संघर्ष बिना जीवन में क्या,
किसी ने कुछ पाया है?
पूज्य वही मनुज जिसने,
संघर्ष को भी ललकारा है।
बाधाये अगणित मार्ग में आती,
मस्तक उठाती चलती जाती।
परिश्रम की तलवार भांजकर,
काटो गर्दन सीना तानकर।
इस धरा में जन्मने से पहले
संघर्ष खड़ी असि से बड़ी
कोख में ही मारने के लिए
लिए कटार वो खड़ी।
बचपन के विद्याध्यन में
कंटक अनेको आते है,
संघर्ष पथ पर जो बढ़ा
सफल वही हो पाते है।
छोड़ नींद प्यास भूख उल्लास,
पढता रहा करके अभ्यास।
उत्तीर्ण वही हो पाता है,
जो संघर्षो से न घबराता है।
यौवन का संघर्ष अनोखा,
सपने अनेक दृष्टि झरोखा।
गलत मार्ग जो चुन जाये,
जीवन कलंकित हो जाये।
मार्ग सही जो पाता है,
सच मे गरल सह जाता है।
संघर्ष पथ में अविरल चलकर,
सम्मान जग में पाता अचल।
जीवन का ढलना और विकल,
चौथा चरण सबसे दुष्कर।
रोग व्याधि ने घेरा है,
चहुँ और दुखो का डेरा है।
इस जीवन संघर्ष का,
यह अंतिम रण होगा।
जीते या हारे कोई इसमें,
अपना तो निश्चित मरण होगा।
मनुज नहीं वह अकर्मण्य,
पशु तुल्य जीता है।
उद्यम करना छोड़ जो,
भाग्य भरोसे सोता है।
जीवन के इस संघर्ष राह में,
छोड़ भाग्य जो लड़ते है।
अपने भुजबल से गिरिराज ,
शिखर को पग भीतर कर देते है।
सकल जीवन संघर्षमय है,
कौन अछूता है इससे।
बिना लड़े जो जीत सके,
नहीं योद्धा जग में बसे।