#संघर्षशील जीवन
#नमन मंच
#विषय संघर्षशील जीवन
#शीर्षक शिक्षा पद्धति में बदलाव
#दिनांक १६/०९/२०२४
#विद्या लेख
‘राधे राधे भाई बहनों’
हर साप्ताहिक प्रोग्राम में किसी न किसी आध्यात्मिक व सामाजिक मुद्दे को लेकर उस पर चिंतन करते हैं, आज के चिंतन का विषय है
“मानवता का गिरता स्तर”
आजकल लोगों की एक धारणा बन चुकी है किसी भी प्रकार येन केन प्रकरण यह जीवन सफल हो जाए, न पाप पुण्य की परवाह न धर्म अधर्म की, न सभ्यता और संस्कृति की परवाह, बस किसी तरह यह जीवन सुरक्षित हो जाए सफल हो जाए, यही एक कामना रहती हर इंसान की, क्या सही है और क्या गलत इस से कोई मतलब नहीं !
“बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया”
बस किसी भी प्रकार पैसा आना चाहिए फिर चाहे कुछ भी सजा भोगनी पड़े वह भोग लेंगे !
पता है आज की शिक्षा भी ऐसी ही हो गई जिसमें बच्चों को किस प्रकार से जीवन में सफल होना है, कैसे पैसा कमाया जाता हैं, किस प्रकार इस जीवन को बेहतर बनाएं, कैसे अपना नाम रोशन करें,
बच्चों को एक दूसरे से प्रेम के साथ जीवन जीने की शिक्षा, भारतीय संस्कृति दर्शन की शिक्षा, पारिवारिक प्रेम और मिलन की शिक्षा, मिलजुल एक दूसरे का सहयोग करते हुए जीवन को आगे बढ़ाने की शिक्षा, राष्ट्रहित को सर्वोच्च स्थान देते हुए देश प्रेम की शिक्षा, यह सब गुण अब शिक्षा से लुप्त हो गए हैं !
जिसमें कुछ प्राइवेट स्कूल और कॉलेज तो मात्र बच्चों को पैसे कमाने की एक मशीन बना रहे हैं !
कुछ स्कूल और कॉलेज ऐसे भी है जहां पर विदेशी संस्कृति को ही महत्व दिया जाता है, भारतीय संस्कृति का वहां पर नामोनिशान भी नहीं !
यही वजह है कि आज हमारे बच्चे विपरीत दिशा की ओर जा रहे हैं, आज देश की युवा पीढ़ी सिर्फ अपने आप में सीमित हो गई है, उनके लिए फर्स्ट प्राइटी हो गई मैं और सिर्फ में, अपने बारे में सोचने का सबको अधिकार है, और अपने लिए कुछ करने का भी अधिकार है, लेकिन उसके लिए नैतिक मूल्यों का हनन नहीं होना चाहिए, जो कि इस देश के भविष्य के लिए एक खतरा है !
अब बात करते हैं देश के बुद्धिजीवी इंसानों की और धार्मिक गुरुओं की !
आज देश के बुद्धिजीवी इंसान और धार्मिक गुरु भी संकीर्ण सोच के हो गए हैं, वह भी अभी अपनी सभाओं में अपने फॉलोअर्स को इस जीवन में सफलता की ही बात करते हैं, कैसे पैसा कमाए किस प्रकार से इस जीवन को आगे बढ़ाएं !
मुझे लगता है कि हमारा समाज और हमारे देश के बुद्धिजीवी इंसान या धार्मिक गुरु मूल मकसद से भटक गए हैं !
हो सकता है यहां मैं गलत हो सकता हूं,
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‘इस लेख का मूल सारांश’
मेरी सोच के आधार पर, अब यही से इस लेख की शुरुआत होती है जिसका नाम है सफलता है क्या !
क्यों इस जीवन को सुरक्षित और सफल बनाने की जरूरत पड़ रही !
बस चले जा रहे एक अंधी दौड़ में भाग ले रहे हैं,
जिसकी मंजिल कहां किसी को पता नहीं, चल क्यों रहे किसी को पता नहीं, पहुंचना कहां किसी को पता नहीं !
बस मुझे आगे बढ़ना है पैसा कमाना है, इस जीवन को सुरक्षित और सफल बनाना है, मैं हूं कौन कहां से आया हूं किस लिए आया हूं, मुझे यहां किसने भेजा और अब मुझे कहां जाना है जिंदगी इतनी छोटी क्यों है, इस जीवन के आगे क्या है, जिन लोगों ने आगे सफलता पाई उनका क्या हुआ और जिन लोगों ने आगे सफलता नहीं पाई उनका क्या हुआ !
इन प्रश्नों के उत्तर इंसान को ढूंढने चाहिए, जिसके बारे में हमें कोई समझा नहीं रहा बता नहीं रहा,
बुद्धिजीवी इंसान और धर्मगुरु भी इस राज को नहीं समझा पा रहे या समझाना नहीं चाहते !
अब बात करते हैं उन लोगों की जो आज के 5000 वर्ष पूर्व अपने जीवन को सफल बना कर गए !
शायद ऐसे लोगों को हम इतिहास के पन्नों पर देखेंगे तो हमें उनका कहीं पर भी नाम नहीं मिलेगा,
धन ऐश्वर्य और सफलता के लिए जिसने भी जीवन जिया उनका आज कहीं पर भी इतिहास में नाम नहीं है !
कितने ही धनवान और राजा आए और गए उनका इतिहास में नाम आया लेकिन कुछ समय के बाद उनका नाम मिटता गया, दूसरी से तीसरी पीढ़ी के बाद उनका नाम लोग भूल जाते हैं !
इसका मतलब साफ है कि वर्तमान को उन लोगों के बारे में जानने की कोई रुचि नहीं है !
अब इस मूल सिद्धांत के बारे में बात करते हैं जिसके लिए मैं यह लेख लिख रहा हूं !
” संघर्षरत जीवन ”
अब बात करते हैं उन लोगों की जिन्होंने आज के 5000 वर्ष पूर्व अपने जीवन को (संघर्षपूर्ण ) संघर्षरत रहते हुए जीवन जिया !
आज मैं आपसे पूछूं ऐसे लोगों के बारे में जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए इस प्रकृति के लिए या इस देश के लिए जीवन जिया सिर्फ मानव समाज की भलाई के लिए जीवन जिया, क्या आप ऐसे लोगों को जानते हैं,
शायद आप कहेंगे = हां
इतिहास और धार्मिक ग्रंथ भरे पड़े ऐसे महापुरुषों के जिन्होंने अपने अपना पूरा जीवन मानव जीवन की भलाई के लिए लगा दिया प्रकृति की रक्षा के लिए लगा दिया, जिसने निज स्वार्थ से ऊपर उठकर देश प्रेम और देशभक्ति को सर्वोपरि माना ऐसे महापुरुषों का आज हम नाम भी सुनते और उनके आदर्शों पर चलने की कोशिश भी करते हैं !
इस वर्णन के माध्यम से यह साफ हो गया है कि जिन लोगों ने अपने आप को सफल और सुरक्षित बना कर खुद के लिए जीवन जिया उनका कोई इतिहास नहीं है !
और जिन लोगों ने अपना जीवन मानव कल्याण के लिए लगाया और सारी जिंदगी कठिनाइयों में रहकर संघर्षपूर्ण जीवन जिया प्रकृति की रक्षा के लिए जीवन जिया
उनका हम इतिहास में नाम सुनते हैं और पढ़ते भी हैं, अब जैसे उदाहरण के लिए देश की आजादी में सबसे पहले हम सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह ऐसे क्रांतिकारी नेताओं के नाम हम इतिहास में पढ़ते हैं, इसी कड़ी में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक ऐसे अनेक देशभक्त और राष्ट्र प्रेमी नेता हुए जिन्होंने भारत माता की आजादी के लिए अपने सभी सुखों का त्याग कर दिया, उनके इन्हीं संघर्ष और त्याग की भावना ने उनको अमर कर दिया,
और आज भी हम इनके सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करते हैं !
इसका मतलब साफ है कि सफलता का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं है !
सफलता हमारे जीवन को सुरक्षित तो बनाती है लेकिन इसका हमारे संसार में आने का उद्देश्य पूरा नहीं होता !
संघर्षरत जीवन थोड़ा कष्टप्रद लगता लेकिन इसी से जीवन सार्थक माना जाता है, संसार में आने का उद्देश्य भी पूरा होता है !
इसीलिए मैं शिक्षा नीति में बदलाव के पक्ष में हूं,
हमारे देश की शिक्षा को सफल होने के लिए नहीं बल्कि संघर्ष पूर्ण जीवन जीने की कला सिखाने के पक्ष में हूं !
अगर शिक्षा नीति में बदलाव किया जाए तो शायद हो सकता है लोग फिर से अपने भारतीय संस्कृति को समझने में सफल होंगे और यह भ्रष्टाचार और अत्याचार थोड़ा कम हो सकता है !
दोस्तों हमारे देश का तो इतिहास रहा है, हमारे देश के साधु संत सन्यासी ऋषि मुनि तपस्वी और हमारे देश के बुद्धिजीवी युवा शहीद नेता इन सब ने अपने जीवन में संघर्ष किया है, जीवन में सफलता पाने के लिए नहीं बल्कि इस जीवन का सदुपयोग करने के लिए अपने जीवन को सार्थक करने के लिए संघर्ष किया है, मानव कल्याण के हित की भावना के लिए संघर्ष किया है !
इसीलिए आज हम उनके बारे में जानते हैं और इतिहास उन महापुरुषों के गुणगान से भरा पड़ा है !
अत: फिर मैं उसी प्रश्न पर आता हूं !
सफल होने के लिए जीवन नहीं जिए
सफलता सिर्फ आप को सुरक्षित कर सकती इससे ज्यादा कुछ नहीं, संघर्षरत जीवन जिए यही जीवन की सार्थकता है !
यह मेरी निजी विचार है, इन विचारों से हो सकता आप संतुष्ट नहीं हो उसके लिए मुझे क्षमा करना !
अगले सप्ताह फिर किसी नए विषय को लेकर चिंतन और चर्चा करेंगे !
🙏’राम राम जी’🙏
🙏क्षमा प्रार्थी🙏
राधेश्याम खटीक
स्वरचित मौलिक रचना
राधेश्याम खटीक
भीलवाड़ा राजस्थान
shyamkhatik363@gmail.com