संगीन जुर्म
सोचना भी जुर्म है
बोलना भी जुर्म है
ज़ुल्मतों के राज़
खोलना भी जुर्म है…
(१)
खौफ़नाक सन्नाटा
जब फैला हुआ हो
बगावत हवाओं में
घोलना भी जुर्म है…
(२)
जब तलवार सामने हो
तो हाथ की कलम से
जल्लाद की ताक़त को
तौलना भी जुर्म है…
(३)
वक़्त के सुकरात को
मिलता है ज़हर यहां
जान-बूझकर ख़तरा
मोलना भी जुर्म है…
(४)
पहले से चिढ़े हुए
हों हुक़्मरान जिनसे
उनके साथ खुलेआम
डोलना भी जुर्म है…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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