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27 Mar 2022 · 4 min read

संगीतमय गौ कथा (पुस्तक समीक्षा)

पुस्तक समीक्षा
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संगीतमय गौ कथा : रचयिता, आचार्य विष्णु दास शास्त्री
प्रकाशक : श्री अग्र महालक्ष्मी मंदिर, 33/6/1/ए.बी. बड़ा पार्क ,बल्केश्वर ,आगरा 282005 उत्तर प्रदेश ,
मोबाइल 827 9466 054 तथा 9410 6687 34
प्रथम प्रकाशन : दिसंबर 2021
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समीक्षक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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गाय को केंद्र में रखकर जनता के बीच चेतना जगाने के लिए कथा के आयोजन से अच्छा कोई दूसरा माध्यम नहीं हो सकता। इस कार्य के लिए जहाँ एक ओर कथा-वाचन की मर्मज्ञता की आवश्यकता होती है वहीं दूसरी ओर गौ कथा भी मंच से पढ़ी जा सके ,ऐसी सामग्री की अपेक्षा भी रहती है। आचार्य विष्णु दास शास्त्री द्वारा लिखित संगीतमय गौ कथा इस दृष्टि से सराहनीय कार्य है। शास्त्री जी 101 अग्रसेन भागवत मंच से प्रस्तुत कर चुके हैं ,अतः मंच से संगीतमय गौ कथा के प्रस्तुतीकरण में उनको जो विशेषज्ञता प्राप्त है ,उसको आसानी से समझा जा सकता है ।
दोहे-चौपाई-छंद के माध्यम से 64 पृष्ठ की गौ कथा लिखना अपने आप में एक कठिन कार्य है । पुस्तक में जैसा कि नाम से स्पष्ट हो रहा है ,संगीतमय कथा गौ के संबंध में कही गई है। गाय के संबंध में प्रवचन तथा उपदेश देने वाले प्रसंग महत्वपूर्ण तो होते हैं, लेकिन अगर छंदबद्ध रूप से गेयता के साथ संगीतमय प्रस्तुति हो जाती है ,तब उसकी बात कुछ और ही रहती है ।आशा है यह संगीतमय गौ कथा अग्रसेन भागवत के समान ही शास्त्री जी द्वारा सामाजिक चेतना फैलाए जाने के कार्यों का एक मील का पत्थर सिद्ध होगी ।
पुस्तक में अनेक स्थानों पर गाय की महिमा गाने में कवि ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है और लिखा है :-

गौ के उदर सवा मन सोना ,जित रहती उत स्वर्ण बिछौना
गौ-सेवा से सुख पाओगे ,गीत खुशी के नित गाओगे
(पृष्ठ 23)

केवल गाय की महिमा गाने तक ही कवि का ध्यान सीमित नहीं रहा है ,वह अपनी रचना को गौ-सेवा की दिशा में सार्थक रूप से आगे बढ़ाने का इच्छुक है। इसीलिए एक सुंदर छंद में उसमें अपने विचारों को कितनी स्पष्टता और साधुता के साथ लिखा है :-

नाम उच्चारण नहीं ,पर्याप्त सेवा भी करो
चारा मिले सानी मिले ,यह बात नित चित में धरो
दुइ बार नहलाओ पिलाओ ,शुद्ध जल से दुख हरो
छाँव वायू सँग सुरक्षा ,मान से झोली भरो
(प्रष्ठ 17)
देसी और विदेशी गाय में जो अंतर है ,कवि ने उसको भी संगीतमय शैली में बड़े अच्छे ढंग से लिखा है :-

उठ्ठा हुआ कंधे पे देसी गौ वृषभ का भाग जो
भार लेकर चलन में है काम आता कुकुद वो
कंठ के नीचे लटकता भाग है गलकंबला
ग्रीष्म से रक्षा करे सहने की शक्ती नित भला

सभी जगह काव्य का भावार्थ लिखकर कवि ने अपने विचारों को और भी सरल और सुबोध बना दिया है । इसी छंद का भावार्थ कवि ने इस प्रकार लिखा है :-

“देसी गाय और बैल के कंधे पर का उठा हुआ भाग जिसे कुकुद कहा जाता है ,बोझ उठाने में बहुत सहायता करता है । कंठ के नीचे वाला लटकता हुआ भाग जिसे गलकंबला कहा जाता है, गर्मी को सहने की शक्ति देने वाला एवं गाय का भला करने वाला होता है । ” (पृष्ठ 44 , 45)

कवि को इस बात की मार्मिक वेदना है कि धन के लोभ में गौ हत्या जैसा पाप लोग कर रहे हैं । लेकिन इससे भी बढ़कर जो रहस्य की बात कवि ने अपनी अंतर्दृष्टि से जानी है ,वह यह है कि इस धन-लोलुपता में धर्म और जाति का भेद नहीं है अपितु धन-लोलुपता की कोई जाति और धर्म नहीं होता । कवि लिखता है:-

गौ को कौन काटता भैया ?,जिसको प्यारा लगै रुपैया
धन-लोलुप की जात न होती ,गौमाता रह जाती रोती
(पृष्ठ 47)
इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए लालची हत्यारे शीर्षक से कवि लिखता है:-

अब ना कोई हिंदु मुसलमां, सिख ईसाई रहा न इंसां
धंधे में जाती नहिं आड़े, सर्व समन्वय झंडा गाड़े

इसका भावार्थ कवि ने इस प्रकार लिखा है:- “आज के जमाने में न तो कोई हिंदू है और न ही कोई मुसलमान । आज का इंसान सिख ईसाई भी नहीं रहा । क्योंकि धंधे में जाति आड़े नहीं आती ।(राजनीतिक लोग ध्यान दें) धंधे में सबको साथ लेकर ही सफलता का झंडा गाड़ा जा सकता है ।”(पृष्ठ 52)
असांप्रदायिक विचारों के साथ गौ-हत्या के प्रश्न पर विचार करना पुस्तक रचयिता का विद्वत्ता भरा आकलन है । इससे इस बात का भी पता चलता है कि इस प्रश्न का समाधान उन प्रवृत्तियों का आकलन करके ही निकाला जा सकता है जो निर्दयतापूर्वक व्यावसायिक दृष्टिकोण से कार्य कर रही हैं।
पुस्तक में गौ से संबंधित विभिन्न कथाओं को संक्षेप में वर्णित किया गया है। राजा दिलीप और नंदिनी ,राजा नहुष की गौ सेवा ,श्री कृष्ण और गाय इनमें मुख्य हैं ।गाय कृषि प्रधान भारत के केंद्र में सदैव से पूजनीय रही है । संगीतमय गौ कथा लिखने और मंच से उसकी सुमधुर प्रस्तुति के द्वारा आचार्य विष्णु दास शास्त्री एक महान कार्य कर रहे हैं । इसके लिए उनका जितना भी अभिनंदन किया जाए कम है। पुस्तक में खड़ी बोली और लोक भाषा के शब्दों को इस प्रकार से प्रयोग में लाया गया है कि वह आपस में अच्छी तरह घुल-मिल गए हैं । इससे जनसमूह के मध्य संगीतमय प्रस्तुति निसंदेह अधिक प्रभावी हो सकेगी।

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