संगम
धरतीक गहराइमे बैसए,
प्रेमक दिव्य सनेस,
वनक छागरमे,
सुने पुरखा केर मधुर आवाज ।
सूरूज किरण बुनैत हे ,
सपना केर रंगीन गीत,
सभ गाछक छाहरिमे,
नुकायल हे भक्ति केर रीत ।
नदीक केर बहैत धारा,
जयसे मोनक प्यास बुझाए,
प्राकृतिक जीनगी केर बीच,
देवनक रस प्रेम भेट जाए ।
आब, एकहि संग चलैत,
प्रेम आ धरोहर केर पग पर,
संघर्ष आ भक्ति के जोड़ैत,
सहर्ष से यात्रीक पथ पर।
—-श्रीहर्ष—