संगठग
लाश पड़ी है एक, मगर हैं गिद्ध बहुत।
जन हित करनेवाले,पर हैं सिद्ध बहुत।।
हर शहर हर गांवों मे, है हुआ इनका गठन।
पांचलोगों से बना पर, है देशव्यापी संगठन।।
लोगों को ये है डराते, सबको आपस में लड़ाते।
मस्त जीवन है सुसज्जित, मुफ्त की रोटी हैं खाते।।