संक्रमित शुभकामनाएं
कागजों में कैद होकर, जी रही घुट-घुट दुआएं।
कौन हैं हम? पूछती हैं, संक्रमित शुभकामनाएं।।
हाथ में लेकर दिये जो चल रहे थे,
ठोकरें खा खाइयों में गिर गये हैं।
आ गयी है मौज फिर से दोगलों की,
दिन दलालों के अचानक फिर गये हैं।
दिख रही हैं जिंदगी की जंग लड़तीं प्रार्थनाएं।
कौन हैं हम? पूछती हैं, संक्रमित शुभकामनाएं।।
देखकर रुतबा तिमिर का छुप गये हैं,
गेह में अपमान के डर से उजाले।
बन रहे हैं तंग आ अनदेखियों से,
प्रश्न असमय मृत्यु के मुख के निवाले।
सुन रहे हैं मर गयीं मुठभेड़ में आलोचनाएं।
कौन हैं हम? पूछती हैं, संक्रमित शुभकामनाएं।।
कर रहा मंथन सकल जग बैठकों में,
कौन है जो इस समस्या से उबारे।
ज्वर जगत को हो गया दे कौन औषधि,
पड़ गये हैं वैद्य ही बीमार सारे।
रक्त से लथपथ पड़ी हैं भूमि पर संभावनाएं।
कौन हैं हम? पूछती हैं, संक्रमित शुभकामनाएं।।
प्रदीप कुमार “दीप”
सुजातपुर, सम्भल।