संकोच
जितनी सुन्दर भावना, उतनी सुन्दर सोच।
सूर्य किरण की तेज से, सिमट गया संकोच।।
साहस संयम से बढ़ो, करो नहीं संकोच।
किया अगर संकोच तो, दुनिया लेगी नोच।।
करे नहीं निज कर्म को,हो मन में संकोच ।
सदा शर्म में डूबते,रखकर गिरवीं सोच ।।
कहते संकोची नहीं, अपने दिल का हाल।
मन के डिब्बे में रखे, बंद सभी निज ख्याल।।
जो संकोची है सदा, मन को रखें मसोस।
करे शर्म हर कर्म में, हाथ लगे अफसोस।।
घन ओढ़े संकोच का,पहन शर्म का वस्त्र।
मन घायल होता रहा, नहीं उठाया शस्त्र। ।
-लक्ष्मी सिंह