संकुचित हूं स्वयं में
संकुचित हूं स्वयं में इतना
स्पष्ट कहां हो पाती हूं ।
कोमल मन के भावों में
अभिव्यक्त कहां हो पाती हूं।।
भावनाओं की बहुतायत में
कोई भाव कहां जी पाती हूं ।
अपने विचारों की दुनिया में
निःशब्द खड़ी रह जाती हूं।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद