संकल्प
कुछ समझ ना पाऊं ये क्या से क्या हो गया।
हंसता खेलता परिवार घर में बंद होकर रह गया।
कुछ दिन तो कट गए हंसी खुशी दिल्लगी में।
दिन बीतते भविष्य की चिंता सताने लगी मन में।
घर का राशन भी धीरे धीरे खत्म होने लगा।
बाजार में आटे दाल का भाव आसमान छूने लगा।
रोजमर्रा की चीजें भी बाजार से गायब होने लगी ।
दैनिक जरूरतों को पूरा करने की चिंता सताने लगी।
घर से बाहर निकलने मे डर लगता था।
पर मजबूरी में सब कुछ करना पड़ता था।
कुछ दिन तो बच्चों को बहलाता रहा।
पर अब तो खुद को बहलाना मुश्किल पड़ रहा।
सोचता हूं कब तक यूं डरे डरे से घर पर पड़े रहेंगे।
जब तक घर से बाहर निकल कर संकट का सामना नहीं करेंगे।
तब तक कैसे होगा खत्म होगा यह मुसीबत का सिलसिला।
जिससे छाई चारों तरफ मायूसी और लोगों का मनोबल हिला।
मौत का खौफ लोगों को और कमजोर बना रहा है।
आदमी विकल्प के अभाव में असहाय महसूस कर रहा है ।
सभी चिंताग्रस्त हैं क्या मजदूर क्या किसान क्या व्यापारी।
क्या लघु उद्योग धन्धे वाले क्या नौकरी पेशा कर्मचारी।
काम नहीं करेंगे तो क्या खाएंगे और क्या खिलाएंगे ?
क्या दूसरों पर निर्भर होकर याचक बनकर रह जाएंगे ?
इसलिए इस मुसीबत का डटकर सामना करना पड़ेगा।
इसे पूरी लगन और जतन से हराना पड़ेगा।
अगर हम हाथ पर हाथ रखे किसी चमत्कार के भरोसे बैठे रहेंगे।
तो अपना आत्मसम्मान खोकर दूसरो पर निर्भर
होकर जीने को मजबूर होगें ।