संकल्प(कहानी)
संकल्प (कहानी)
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भारती ने टीवी अचानक बंद कर दिया और विनीता से कहा -“क्यों न एक फिल्म बनाई जाए ,जिसका नाम ईमानदार ड्रग्स अधिकारी रखा जाए ? ”
दोनों सहेलियों ने मिलकर एक लघु फिल्म प्रोडक्शन हाउस बना रखा था ,जो समय समय पर लघु फिल्में बनाता था । लघु फिल्में कुछ खास समस्याओं पर आधारित होती थीं तथा दर्शकों के द्वारा सराही जाती थीं। दोनों मित्रों का मनोबल इसीलिए बढ़ता जा रहा था।
” ठीक है ! विषय अच्छा है । सामयिक है । फिल्म को दर्शक पसंद करेंगे । 15 मिनट की बनाओगी ? “-विनीता ने पूछा ।
“नहीं । इस बार बड़े पर्दे पर यह फिल्म दिखाई जाएगी । सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी । देश में मुट्ठी भर ही तो ईमानदार अधिकारी हैं ,जो सामाजिक बुराइयों से बिना किसी प्रलोभन के जूझ रहे हैं। हम उनका संघर्ष पर्दे पर दिखाएंगे । बड़े पर्दे पर करोड़ों लोगों तक हम फिल्म को पहुंचाएंगे।”
” बड़ा पर्दा तो बहुत महंगा बैठेगा ?” सुनकर विनीता ने प्रश्न किया ।
“संघर्ष भी तो बहुत महंगा पड़ रहा है । जान पर खेलकर ड्रग्स की बुराई के खिलाफ कोई ईमानदार अफसर जब उठ खड़ा होता है तो चारों तरफ से सेलिब्रिटी उसे खा जाने के लिए दौड़ पड़ते हैं । भ्रष्ट नेता तिलमिला उठते हैं । कहीं न कहीं कोई तो ताकतवर लोगों के नाभि में तीर लग रहा है । हम इन्हीं सब बातों को उजागर करेंगे ।”-भारती ने आत्मविश्वास से कहा।
विनीता का चेहरा अपनी मित्र की योजना पर कभी चमक उठता था ,तो कभी मुरझाने लगता था । “एक बात बताओ भारती ! जो लोग एक ईमानदार अफसर को चैन से जीने नहीं दे रहे ,वह क्या तुम्हारी फिल्म बनने देंगे ? उन लोगों के हाथ बहुत लंबे हैं । कानून के हाथ छोटे है। फिर, यह निहित स्वार्थों से जुड़े हुए लोग एक बेहतरीन गैंग की तरह काम करते हैं । यह सब कुछ कर सकते हैं । जिस दिन तुम ईमानदारी को पुरस्कृत करने के लिए सचमुच आगे आ गईं, उस दिन यह प्रोडक्शन हाउस बंद भी हो सकता है ।”
भारती झुँझला गई – “तो क्या करें ? फिल्म न बनाएं ? ”
“मगर पैसा भी तो नहीं है ? विनीता ने इस बार तस्वीर का दूसरा पहलू सामने रखा।”
“बात तो सही है । हमारे पास फिल्म बनाने के लिए पैसा नहीं है । अच्छी फिल्म दस करोड़ रुपए में बनेगी। कहीं से फाइनेंस मिल जाए तो एक बार फिल्म रिलीज होने के बाद हम सारा पैसा वापस लौटा देंगे । जनता ईमानदारी के साथ है । ईमानदार ड्रग्स ऑफिसर देश का असली हीरो है । हम उस पर हो रहे चौतरफा हमले में छिपे हुए षड्यंत्रों को उजागर करेंगे । ड्रक्स माफिया को पकड़ना कितना जोखिम भरा काम होता है ,इस बात को दिखाएंगे । कितनी सूझबूझ से अधिकारियों की एक टीम सुनियोजित तरीके से मौके पर पहुंचती है और धावा बोलकर अपराधियों को खींच कर ले आती है ,यही सब तो हमारी फिल्म की कहानी बनेगी । यह सब छोटा-मोटा धंधा नहीं है । इसके पीछे अरबों-खरबों की कहानी है । कई-कई करोड़ रुपए एक बार में कमा लेने की हवस है । अगर ईमानदार अधिकारियों को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो यह स्वार्थी नशे के धंधेबाज पूरे देश और दुनिया को नशे की बुराइयों में डुबोकर रख देंगे।”
विनीता ने अब यह सोच लिया था कि भारती बिना फिल्म बनाए नहीं रुकेगी । वह विनीता के स्वभाव से भलीभांति परिचित थी उसे मालूम था कि जो बात एक बार इसके दिमाग में बैठ जाती है और जिसे यह सही समझती है ,उसे करके ही ठानती है । ड्रग्स के केस में भी अब यही हो रहा है । भारती को लगता है कि केवल नशे के खिलाफ विज्ञापन देने से काम नहीं चलेगा । नशे के कारोबार के सारे अड्डों पर हमला करना पड़ेगा और इसके लिए जान हथेली पर रखकर निर्लोभी और ईमानदार ड्रग्स अफसरों के कारनामों का अभिनंदन करना पड़ेगा । सोचने के बाद विनीता अपनी कुर्सी से उठी और भारती के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली ” चलो ,किसी फाइनेंसर की तलाश करते हैं । ”
भारती मुस्कुरा उठी । उसे भी मालूम था कि मेरी मित्र मेरा साथ देने में पीछे हटने वाली नहीं है ।ऑटो में बैठ कर दोनों अब एक फाइनेंसर की तरफ जा रही हैं । फाइनेंसर से भारती की पुरानी मुलाकात है। यद्यपि कभी फाइनेंस लेने की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन फाइनेंसर के कार्यालय में आसानी से प्रवेश मिल गया । विजिटिंग कार्ड में भारती का नाम पढ़ते ही फाइनेंसर ने बिना देर किए बुला लिया। कार्यालय कक्ष में भारती के प्रवेश करते ही फाइनेंसर उठ कर खड़ा हो गया । बोला -“भारती जी ! आज मुझे बहुत खुशी हो रही है । आपने हमारे दफ्तर में आकर हमें गौरवान्वित कर दिया है । कितनी महत्वपूर्ण समाज सुधार की लघु फिल्में आपने बनाई हैं ! जितनी प्रशंसा की जाए ,कम है ! काश ! मुझे भी इनमें कुछ सहयोग करने का अवसर मिला होता ।”
सुनते ही भारती ने झट से जवाब दे दिया -“आज आपके सहयोग के लिए ही तो हम आए हैं । एक फिल्म बना रहे हैं ,जो समाज से एक बहुत बड़ी बुराई को मिटाने के लिए उठाया गया हमारा एक छोटा-सा कदम होगा । बड़े पर्दे की फिल्म हमें बनानी है । पैसों की जरूरत पड़ेगी।”
फाइनेंसर खुशी से उछल पड़ा । बोला-“भारती जी ! मैं आपसे कई वर्षों से यही कहना चाहता था । लघु फिल्मों को छोड़कर अब आप बड़े पर्दे पर आ जाइए। यही आपके लिए ठीक है । जितना पैसा कहें, फाइनेंस कर दूंगा । आप स्टोरी बताइए। कितना चाहिए ? दस करोड़ की जरूरत पड़ेगी ,ठीक है ,मिल जाएगा । आप कहानी मुझे समझाइए ।”
“हम एक ईमानदार ड्रग्स ऑफिसर को केंद्र में रखकर बड़े पर्दे की फिल्म बनाना बनाना चाहते हैं । ड्रग्स अधिकारी ईमानदार है । ड्रग्स माफिया को पकड़ता है । ड्रग्स के धंधे पर चोट करता है। परिणाम तय है । भ्रष्ट राजनीतिज्ञ तथा समाज का सफेदपोश अपराधी वर्ग उसके खिलाफ उठ खड़ा होता है तथा उसे परेशान करने की नियत से साजिशें रचने लगता है । अफसर अनेक मुश्किलों से गिरने के बाद अंततः अग्नि परीक्षा में स्वयं को खरा साबित कर देता है। सत्य की विजय होती है । असत्य पराजित हो जाता है । बस यही कहानी है । आपको कैसी लगी ? ”
फाइनेंसर का चेहरा कहानी सुनकर मुरझा गया था । उसका गला सूख गया। आवाज नहीं निकल पा रही थी । मेज पर रखा हुआ एक गिलास पानी उसने एक ही सांस में पी लिया । सिर पर हाथ रखा और गहरी सोच में डूबा रहा। काफी देर बाद सिर उठाकर उसने सिर्फ इतना ही कहा -“भारती जी ! ऐसी फिल्म नहीं बन सकती । इसे बनाने की परमिशन नहीं मिलेगी ।”
“परमिशन ? किस की परमिशन ? क्या ईमानदारी को बड़े पर्दे पर दिखाने के लिए बेईमानों की परमिशन की जरूरत होती है ? हम क्यों इस विषय पर फिल्म नहीं बना सकते ?”-भारती का तीखा सवाल था ।
“फिल्म तो आप बना सकती हैं ।विषय भी अच्छा है । लेकिन कहानी बदलनी होगी । कहानी का नाम ईमानदार ड्रग्स अधिकारी के स्थान पर गरम गोश्त रखना पड़ेगा । ड्रग्स की गतिविधियों के साथ सेक्स जुड़ा हुआ है । सारी ड्रग्स पार्टियों के मूल में यह सेक्स का सुख ही तो है ,जिसकी हवस ड्रग्स के धंधे को दिन दूना रात चौगुना कर रही है । चार ड्रग्स लेते ही आदमी की हवस चौगुनी हो जाती है और फिर वह वस्त्र-विहीन भूखे भेड़िए की तरह व्यवहार करने लगता है । चाहे स्त्री हो या पुरुष, या किसी भी आयु-वर्ग का हो ,सबकी एक जैसी दशा हो जाती है । न कोई मित्र रहता है ,न बहन और न माँ। किसी का कोई भाई नहीं होता । ड्रग्स पार्टी में केवल निर्वस्त्र स्त्री और पुरुष होते हैं ,जो बेशर्मी के साथ विचरण करते हैं। हम उनकी ही कहानी पर्दे पर दिखाएंगे और उसे गर्म गोश्त का नाम देंगे ।”
भारती को चिंता तो हुई लेकिन फिर उसने विचार-विमर्श की मुद्रा में फाइनेंसर से कहा-” इस प्रकार का चित्रण करने पर हमें भी कोई परहेज नहीं है । वास्तव में यही सब बुराई तो है जिस को मिटाने के लिए हम फिल्म बना रहे हैं । इसका दृश्य भी फिल्म में जरूर दिखाया जाएगा ।”
फाइनेंसर ने बीच में ही भारती को टोक दिया ..”इसका दृश्य भी दिखाया जाएगा ,ऐसी बात नहीं है । हमें पूरा फोकस फिल्म में इसी दृश्य पर करना होगा । इंटरवल तक फिल्म में गरम गोश्त की मौज-मस्ती दिखाई जाएगी । अर्धनग्न लड़के और लड़कियां रात दस बजे से किसी फार्म हाउस में होने वाली पार्टी में आना शुरू होंगे । बारह बजे तक डिनर ,शराब और छोटी-मोटी अश्लील हरकतें होंगी । बारह बजे सब लोग छिपाकर लाए गए ड्रग्स का सेवन करेंगे और उसके बाद वासना का नंगा नाच पार्टी में दिखने लगेगा । सब के वस्त्र उतरने शुरू हो जाएंगे । केवल गरम गोश्त के रूप में टहल रहे नौजवान लड़के और लड़कियां फिल्म के पर्दे पर नजर आएंगे। यही सब देखने के लिए तो दर्शक जाते हैं ? ”
” नहीं-नहीं फाइनेंसर साहब ! इंटरवेल तक अगर हम यही सब कुछ दिखाते रहे ,तो हमारी फिल्म तो उद्देश्यों से भटक जाएगी ?”
“किन उद्देश्यों की बात आप कर रही हैं भारती जी ? फिल्म फ्लॉप हो गई तो उद्देश्यों को क्या शहद लगाकर चाटेंगे ? जहां तक सिद्धांतों ,आदर्शों और देशभक्ति के नारों का प्रश्न है इंटरवल के बाद ईमानदार ड्रग्स ऑफिसरों की एंट्री भी होगी । उनमें से कुछ को रिश्वत देकर खरीदना भी दिखाया जाएगा । एक-दो अधिकारी जो आदर्शों की दुनिया में खोए रहते हैं और बेवकूफ टाइप के होते हैं ,उनको भी दिखाएंगे । ऐसे लोगों के खिलाफ उनके ही सहकर्मियों से षड्यंत्र भी कराएंगे । उनके परिवारों पर ड्रग्स माफियाओं के हमले होते हुए दिखाएंगे । कुछ आँसू होंगे ,कुछ हवाओं में गूंजती हुई चीखें होंगी । एक या दो ड्रग्स ऑफिसरों को जेल भी भिजवा देंगे। हम यह दिखाएंगे कि ड्रग्स माफियाओं के हाथ बहुत लंबे होते हैं। उन से टकराने की हिम्मत मत करो । यह देश की हकीकत है । बस ,आखिर के पाँच मिनट में ड्रग्स ऑफिसर को ईमानदार घोषित करते हुए उसे थके और बुझे कदमों से जेल के बाहर निकाल कर खड़ा कर देंगे। इस तरह जिन आदर्शों की विजय आप चाहती हैं ,उनको अंततोगत्वा जीता हुआ भी दिखा देंगे । अगर आपको कहानी पसंद हो तो फिल्म बनाइए, फाइनेंस हम कर देंगे ।”
भारती की आँखों में आँसू बहने लगे।बोली” फाइनेंसर साहब ! ड्रग्स माफिया कितना बड़ा है कि वह आप के दफ्तर में भी अदृश्य रूप से उपस्थित है । बड़े पर्दे पर हमारी फिल्म नहीं बन पाएगी ,लेकिन छोटे पर्दे पर हम ईमानदार ड्रग्स अधिकारी नाम से फिल्म जरूर बनाएंगे । बिना किसी से फाइनेंस लिए ।”
उसके बाद भारती विनीता का हाथ पकड़कर कुर्सी से उठ खड़ी होती है और चल देती है एक संकल्प मन में लिए हुए।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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