श्रेष्ठ सुन्दर चिन्तन मन
वॉट्सएप्प हो या फ़ेसबुक, या हो टेलीग्राम।
धरती या आकाश हो, स्वच्छ सभी हो धाम।।
स्वच्छ सभी हों धाम, श्रेष्ठ सुन्दर मन चिन्तन।
आपस में सद्भाव, विश्व में हो हर क्षण जन।।
कहि ‘कौशल’ कविराय, घृणा की छोड़ें गप-झप।
हों समाज सब स्वच्छ, फ़ेसबुक संग वॉट्सएप्प।।