श्रृंगार रस
श्रृंगार रस
भगवान ने जब इस सृष्टि का निर्माण किया होगा , तब ईश्वर इस जगत को सजाने के लिए बहुत सोचा होगा। कई कल्पनाएं मन में आई होंगी। बहुत सोच विचार के बाद सृष्टि में मानव सहित जीव जगत भी इस विचित्र कायनात में बनाए। जीव जगत की दुनिया में अत्यंत छोटे- बड़े चौपाए पशु- पक्षी ,कीट- पतंगे, पेड़ -पौधे तथा विभिन्न प्रकार की लताएं भी बनाकर इस प्रकृति को सजाया। प्रकृति को मनोरंजक बनाने के लिए छः ऋतुएं भी बनाई। पर्वत ,नदियां, वन -बाग भी बनाए ।अब ईश्वर ने इन को सजाने के लिए और सौंदर्य व हृदय को निखारने के लिए श्रृंगार बनाया। प्रत्येक वस्तु व प्राणी का श्रृंगार भिन्न-भिन्न है, परंतु सभी के हृदय के श्रृंगार के लिए श्रृंगार रस बनाया जिसे रसपति या रसराज भी कहा गया है।
विद्वानों ने श्रृंगार रस को मुख्य दो भागों में विभाजित किया है।
1- एक संयोग रस
2- वियोग रस(विप्रलंभ रस)
संयोग रस–संयोग रस में जब प्रेमी- प्रेमिका पारस्परिक रति में खो जाते हैं चाहे वे प्रकृति का कोई भी जीव क्यों न हो उसे संयोग रस कहते हैं। इसमें संयोग का अर्थ है सुख की प्राप्ति करना। प्रकृति में प्रत्येक जीव में संयोग रस भरा है। नदियों में भी संयोग रस है। वह अपने प्रीतम सागर से मिलने के लिए कल- कल का श्रृंगार कर अविरल बहती है। पवन सर- सर, फर- फर का संगीत छेड़ वन -उपवन में संयोग कर पेड़ -पौधों से मिलन करती है। बादल उड़- उड़ कर नील गगन को छूते हैं। पर्वत वनों का श्रृंगार करके हिम चादर को ओढ़ कर प्रकृति को हर्षाते हैं। फूलों पर भंवरा गुन- गुन का राग छेड़ मंडराता है। पक्षी भी रंग- बिरंगे परों को फैलाकर नाच -नाच कर अपने साथी को रिझाते हैं। पशु जगत में स्वयं को बलशाली जता कर अपने साथी को रिझाते हैं। ईश्वर ने मानव जाति को विभिन्न श्रृंगार प्रदान किया है। देह आकर्षण ,मुख आकर्षण, मधुर वाणी ,साफ, स्वच्छ, सुंदर वस्त्र तथा श्रृंगार सामग्री। मुख्यता महिलाओं को सोलह श्रृंगार प्रदान किए हैं ,जिन्हें अपनाकर अपने साथी को रिझाया जाता है। कई बार साधारण मुखाकृति होने के अतिरिक्त मुख वाणी भी पर हृदय में अपनी छाप छोड़ देती है और नृत्य शैली तो विभिन्न शारीरिक भाव -भंगिमा से पर हृदय में उतर जाना बहुत ही सरल व प्रिय है। नृत्य की भाव भंगिमा से ही अप्सराओं ने ऋषियों की तपस्या को भंग किया था। नारी सौंदर्य को पाने के लिए बड़े-बड़े युद्ध भी होते रहे हैं। नैनो से इशारे ,नैनो की कटार, मंद -मंद मुस्कान ,यौवन की बहार यह सब श्रृंगार के संयोग रस में आते हैं।
2- वियोग रस (विप्रलंभ रस)
जब प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे को हृदय से चाहते हैं परंतु लंबे समय तक मिल न पाते हो,या सदा के लिए बिछुड़ जाते हों तो एक दूसरे की याद में सब कुछ भूल जाते हैं। निराशा होती है तो जीवन नीरस हो जाता है। हृदय में विरह वेदना की प्रतिपल ज्वाला धधकती है ,आंखों में अंधेरा छा कर अश्रु धारा अविरल बहती है, रातों की नींद, दिन का चैन ,मुख का स्वाद, पेट की भूख जाती रहती है ।प्रकृति की सभी वस्तुओं पर वियोग का असर पड़ता। जैसे-दो पंछी आपस में प्रेम संबंध में बंधते हैं, यदि इनमें से एक मर जाता है तो दूसरा उसकी याद में कुछ दिनों बाद मर जाता है ।कुछ प्रजातियां एक साथी से ही संबंध रखते हैं। बिछड़ जाने पर सारा जीवन अकेले ही बिता देते हैं। प्रकृति में भी वायु के न बहने से बादल नहीं उड़ते, बादलों के बिना प्रकृति प्यासी रहती है, वन- उपवन सूख जाते हैं, पर्वत बेजान खड़े नजर आते हैं, उन पर न हरियाली रहती है न ही हिम चादर दमकती है ,न झरने बहते हैं और नदिया- दरिया भी सूख जाते हैं ,सागर शांत हो जाता है। सारा जीव जगत निराश हो जाता है ।प्रकृति में संगीत की ध्वनियां भी शांत हो जाती है इसलिए ईश्वर ने धरती पर प्रत्येक वस्तु में राग- अनुराग भरकर श्रृंगार रस से ओतप्रोत कर दिया है ,ताकी कर्म अनुसार समय-समय पर प्रत्येक ऋतु का, प्रत्येक समय का , प्रत्येक एहसासों का प्रत्येक रसों का अनुभव हो सके। और प्रकृति श्रृंगार रस के श्रृंगार से सदैव चलायमान रहे।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश