“श्रृंगार रस के दोहे”
02/04/2023
♥️ 🌿●वियोग-श्रृंगार के दोहे●🌿♥️
राह निहारे कामिनी , हृदय मिलन की चाह।
जले विरह में रात दिन , कब आएँगे नाह।।१।।
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उतरी नभ से चाँदनी , धवल हो गई रात।
प्रियतम तुम बिन हो रही , नयनों से बरसात।।२।।
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काँपे प्रियतम हाथ क्यों , लिखूँ हृदय की बात।
काटे अब कटती नहीं , मधुर चाँदनी रात।।३।।
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सरवर तट सजनी खड़ी , होकर बड़ी अधीर।
रह रह वदन निहारती , प्रिय बिछुड़न की पीर।।४।।
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बीती बरखा बावरी , बीत गई अब शीत।
साजन दिन -दिन बढ़ रही , मेरे हिय में प्रीत।।५।।
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रूठे साजन से कहुँ , कैसे हिय की बात।
तारे गिन – गिन काटती , सारी – सारी रात।।६।।
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हृदय कूप मन वृषभ प्रिय , भागे चहुँ दिसि ओर।
प्रियतम प्यारे थामना , छोड़ न देना डोर।।७।।
द्वारा:- 🖋️🖋️
लक्ष्मीकान्त शर्मा ‘रुद्र’
देवली,विराटनगर, जयपुर (राज०)