श्रृंगार धरा का
नव श्रंगारित धरा का
भाव नयनाभिराम
मंद मंद हिलोर पवन
स्वप्न पलक विश्राम,
प्रलय सिन्धु का हलाहल भी
अब मौन होने को है
जलधि लहरियों की क्रीडा भी
अब सहज होने को है,
भीषण वन ,घन सघन
पीछे छूट रहे हौले हौले
रवि बिंदु मस्तक पर धर
धवल उषा नैनों को खोले,
भोर सलज्ज सकुचाई सी
शनैःशनैः फैला आलोक
कालरात्रि निमग्न समर में
दिव्य प्रकाश पहुंचा इहलोक ,
पुष्प पर गुंजन भ्रमर का
मधुर कोकिला तान
सुमन सौरभ नूतनता का
प्रकृति दे रही अनुपम वरदान,
भर भर कर ,लो आनंद उर में
तज कर कलुष कालिमा को
नतमस्तक स्वीकार करो
युग परिवर्तन की लालिमा को ,
@नम्रता सरन “सोना”