श्री हनुमत् कथा भाग -3
[20/09 5:52 am] Dr.Tej Swaroop Bhardwaj: Title:None,Content: श्री हनुमन्त कथा
भाग -3
जिस समय हनुमान जी का जन्म हुआ उस समय नीच का सूर्य ,दक्षिणायन कृष्णपक्ष,रिक्ता तिथि थी जो अशुभ माने जाते हैं परन्तु हनुमान जी सबको बलपूर्वक प्रशस्त बनाउसी समय उत्पन्न हुए थे।यह सब सत्संग का प्रभाव था क्योंकि सत्संग से कनिष्ठ भी श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर लेता है।
हनुमान जी के जन्म से चारों ओर हर्षोल्लास छा गया ।देवताओं ने प्रसन्न होकर पुष्पवर्षा की ।माँ अन्जना एवं पिता केशरी की प्रसन्नता का तो ठिकाना हीनहीं रहा ।जन्म के समय हनुमान जी तपे हुए सोने के समान वर्ण वाले तथा मुकुट -कुण्डल एवं कच्छा से शुशोभित थे।
एक दिन अपने प्रिय पुत्र के लिए बुद्धिवर्धक फल लाने के लिए वन को चली गयी और फलों को खोजते हुए उसे देर हो गयी ।तभी भूख से व्याकुल बाल हनुमानजी ने उगते हुए लाल सूर्य को देखा और उसे फल समझ कर खाने के लिए छलाँग लगा दी।उसे तीव्र वेग से सूर्य की ओर जाता हुआ देखकर देवता ,मनुष्य,राक्षसादि आश्चर्य चकित हो गये और उनकी प्रभावशीलता की प्रशंसा करने लगे ।सूर्यदेव के जलाने के भय से शीतलता प्रदान करने के लिए वायुदेव भा अपने पुत्र के साथ हो लिए ।और विचार करने लगे कि ऐसी लीला किसी भी ईश्वर की न तो हुई और न होगी ।
शिशु अंजना नन्दन सूर्य को फल समझकर अत्यधिक प्रसन्न हुए और दोनों हाथों से पकड़कर उसे अपने मुँह में रख लिया ।चारों तरफ अंधेरा छा जाने से हाहाकार मच गया ।उसी समय राहु नामक राक्षस अमावस्या के दिन सूर्य का ग्रास करने हेतु आगया तभी हनुमान जी ने राहु के ऊपर छलाँग मारी जिससे डरकर राहु भाग गया और इन्द्र के पास पहुचकर सब वृत्तान्त वताया।इससे कुपित होकर इन्द्र ने बज्र से प्रहार कर दिया जिससे हनु(ठुड्ढी)टूट जाने से हनुमान जी
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मूर्छित हो गये ।इससे कुपित होकर वायुदव अपने पुत्र को लेकर पहाड़ की गुफा में छुप गये ।इससे वायु का संचरण बन्द हो जाने से सम्पूर्ण संसार व्याकुल हो गया ।दवताओं की प्रार्थना पर ब्रह्मादि देवों ने वायुदेव से प्रार्थना की।बाल हनुमानजी के स्वस्थ हो जाने पर वायुदेव प्रसन्न हो गये जिससे वायु का संचरण पूर्ववत् होने लगा और सभी प्राणी स्वस्थ हो गये।इन्द्रदेव ने हनुमानजी को वरदान देते हुए कहा कि मेरे बज्र से इन्हें किसी प्रकार का भय नहीं होगा ।इनकी हनु (ठुड्ढी) टूट गयी है इसलिए यह हनुमान कहलाएगा।इसीप्रकार अन्य देवों ने अनेक वरदान दिये। ब्रह्मा जी ने किसी ब्रह्मदण्ड से दण्डित न होने का वरदान दिया।
शेष अगले अंक में
प्रेषक-डाँ0 तेज स्वरूप भारद्वाज
बोलो बाल हनुमान जी की जय