श्री शूलपाणि
मद चंद कंठ भुजंग शोभित,
तन भस्म देखते डोलत धरा।
मृगछाल धार कालों के काल,
शोभित कर शूल निकलें जटा से सुरसुरि धरा।।
नर,नाग, किन्नर,सुर-असुर,
गंधर्व, ऋषि, मुनि देखैं दिगम्बरा।
पित्त भांग-धतूर खात,
क्रिडा करत निशाचरा।।
चहचहात संकुत दनुज गावत,
नाचत प्रलुब्ध अरूण आली क्रिडा करत है बिषधरा।
दृश्यदेखि वारिधी प्रणोदित भयंकरा,
श्री शूलपाणि का रूप देखि गिरिजा मनहि मन मुस्कात है,,
लिखत एक अवोध बालक,
शोभा बरनि ना जात है।।
~ विवेक शाश्वत ✍️