*श्री विष्णु शरण अग्रवाल सर्राफ द्वारा ध्यान का आयोजन*
श्री विष्णु शरण अग्रवाल सर्राफ द्वारा ध्यान का आयोजन
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अग्रवाल धर्मशाला, रामपुर के सत्संग भवन में श्रीराम सत्संग मंडल के तत्वावधान में आज दिनांक 11 जुलाई 2022 सोमवार को ध्यान का आयोजन हुआ । गीता मर्मज्ञ श्री विष्णु शरण अग्रवाल सर्राफ द्वारा उपस्थित भाई-बहनों को ध्यान में ले जाने का कार्य संपादित किया गया ।
विष्णु जी ने बताया कि ध्यान में कुछ करना नहीं होता है। ध्यान में केवल जाया जाता है । यह अक्रिया है । इसमें कुछ नहीं करना होता है । हमें केवल अपने भीतर प्रवेश करने का कार्य करना होता है । और जब हम अंतर्मुखी हो जाते हैं तब हम अपने आपको प्राप्त हो पाते हैं । संसार में हम जितना आसक्त रहेंगे, परमेश्वर से दूर होते चले जाएंगे । संसार में रहते हुए भी संसार से दूर रहने की कला का ही नाम ध्यान है।
जो आत्म-तत्व हमारे भीतर विराजमान है, विष्णु जी ने ने बताया कि उसे खोजने के लिए कहीं बाहर जाने की अनिवार्यता नहीं होती। वह तो हमारे बहुत निकट है और हम उसे सरलता से प्राप्त कर सकते हैं । बस दिक्कत यही है कि अधिकांश लोग इस दिशा में प्रयत्न करने की इच्छा भी नहीं रखते । कुछ गिने-चुने लोग उस आत्म-तत्व को पाना चाहते हैं । लेकिन उनमें भी केवल कुछ ही लोग साधना के पथ पर अग्रसर हो पाते हैं । अधिकांश की साधना बीच में छूट जाती है अथवा अनेक अवरोधों का शिकार बन जाती है । परिणाम यह निकलता है कि मंजिल नहीं मिल पाती। इसके विपरीत अगर साधना का नियम बन जाए और हम अपने जीवन की व्यस्तताओं में से कुछ अच्छा समय आत्म-साक्षात्कार के लिए निकाल पाऍं, तो जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने की ओर निरंतर बढ़ा जा सकेगा ।
विष्णु जी ने साधकों को आॉंखें बंद करके आत्मा में विचरण करने के लिए प्रेरित किया । जिसका परिणाम यह निकला कि कई मिनट तक सत्संग भवन में अपार शांति छा गई और अंतर्मुखी होने में उपस्थित साधकों को अनुकूल वातावरण मिल गया ।
वास्तव में देखा जाए तो श्री राम सत्संग मंडल का सत्संग-हॉल अनगिनत साधु-संतों के पदार्पण के फलस्वरुप एक सिद्ध स्थान है । यहॉं प्रबल ऊर्जा की तरंगे आती हैं । यहां सिवाय सकारात्मक विचारों के लगभग आधी शताब्दी से और किसी भी विकृति ने प्रवेश नहीं किया है। ऐसे पवित्र स्थान ध्यान के लिए सर्वथा अनुकूल रहते हैं ।
प्रारंभ में गीता के दूसरे अध्याय के 18 वें श्लोक का विवेचन विष्णु जी ने किया। आपने बताया कि शरीर का विनाश अवश्यंभावी है । इससे बचा नहीं जा सकता । जो इस संसार में आया है, उसे एक दिन संसार से जाना ही है । किंतु आत्मा इन सब से परे है और वह कभी भी मृत्यु को प्राप्त नहीं होती है । अंत: शरीर के जन्म और मृत्यु के आभास से ऊपर उठना ही वास्तविक ज्ञान है । इस ज्ञान के प्रकाश में आत्मा के स्वरूप को मन में बिठाकर संसार के रण-क्षेत्र में आगे बढ़ना ही मनुष्य को अभीष्ट है ।
कार्यक्रम में श्री सुधीर अग्रवाल द्वारा रामचरितमानस के कतिपय अंशों का अत्यंत गंभीर और प्रभावशाली आवाज में पाठ किया गया । आपके ही द्वारा राम नाम की 108 मनकों की माला भी गाई गई।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451