श्री राम !
!! श्रीं !!
जय सियाराम !
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बुला लेना हमें भी दर्श की प्रभु प्यास जागी है,
चरण वंदन करें हम भी हृदय में आस जागी है ,
जुड़ेंगे अनगिनत प्रभु भक्त अनुपम वह छटा होगी ,
छटा वह देखने उर भावना ये खास जागी है ।
🪷
अभागों को कभी देते नहीं है दर्श रघुनंदन,
न पापी को मिले मौका करे प्रभु पाद प्रक्षालन,
बड़े थे भाग्य केवट के किया था पान चरणामृत ,
लगायें भाल पग रज हम लगे ज्यों माथ पर चंदन ।
🪷
राधे…राधे…!
🪷
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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