श्री राम स्तुति
विधा:- गीत (मात्रा भार – १६/१२) सादर समीक्षार्थ
श्रीराम स्तुति
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जिनकी कृपा होते हृदय से, हो सदा भय का गमन।
हे मन! करो श्रीराम का ही, नित भजन हरपल नमन।।
वे जन्म अरु निर्वाण का ही, एक साश्वत रूप हैं।
मुख हस्त पग रक्तिम कमल सम, चक्षु अब्ज स्वरूप है।
अगणित छटा सुंदर सुशोभित, वर्ण अम्बुद आपका।
है गात मदन मनोज रघुवर, नाश करते ताप का।।
हे! जानकी के कंत कर दो, दुर्विचारो का शमन।
हे मन! करो श्रीराम का ही, नित भजन हरपल नमन।।
कंचन मुकुट है शीश शोभित, कर्ण कुण्डल है पड़ा।
हर अंग भूषण से अलंकृत, हेन जिसमें है जड़ा।।
है भाल चंदन तिलक राजे, चंद्र को सिर धारते।
प्रभु दलन करते दुष्टता का, आप ही तो तारते।।
भुजमूल पर रखते शरासन, दानवों का हो दमन।
हे मन! करो श्रीराम का ही, नित भजन हरपल नमन।।
हे दीनबंधु! आनन्दराशि, मनुज रूप शिरोमणि।
हे! दनुज वंश समूल हन्ता, आप ही अंबरमणि।।
शिव शेष मुनि मन रंजना प्रभु, एक तुम चिन्तामणि।
रघुनाथ जी हिय में विराजो, वैदेही चूणामणि।।
कौशल नयन दशरथ ललन हे!, चक्षुजल से आचमन।
हे मन! करो प्रभु राम का ही, नित भजन हरपल नमन।।
अनुरक्ति जब से आपका प्रभु, सिय हृदय में हो गया।
उस जानकी का मन तभी से, आप में ही खो गया।।
यह साँवले सुंदर सुघर वर, राम हों बस कामना।
पूरित करो अभिलाष भगवन, आप ही कर थामना।।
हे जानकीवल्लभ! रमापति, प्रेम के सुप्रस्फुटन।
हे मन! करो श्रीराम का ही, नीत भजन, हरपल नमन।।
जप तप न जानू योग भगवन, है न सात्विक आचरण।
प्रभु हे दयानिधि! हो कृपा बस, ध्यान हो पावन चरण।।
प्रभु मूढ़ हूँ मन भी निराशा, के गहन तम से घिरा।
अब थाम लो पतवार जीवन, दास चरणों में गिरा।।
बनकर उपासक मैं रहूं अरु, हो सदा ही शुद्ध मन।
हे मन! करो श्रीराम का ही, नित भजन हरपल नमन।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर), पश्चिमी चम्पारण
बिहार