(( श्री राम जी की सेना ))
गोस्वामी संत तुलसी दास जी की भगवद्निष्ठा, अमृतमय वाणी तथा उनके सान्निध्य में होने वाली चमत्कारिक घटनाओं की ख्याति सर्वत्र फैल गयी थी ।
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एक बार अकबर ने अपने मंत्री से कहा: सुना है तुलसी दास जी हिन्दुओं के खुदा श्री राम जी से बातें करते हैं ।
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उनके द्वारा हुए कई करिश्में सुनने में आये हैं । तुम किसी भी तरकीब से तुलसी दास जी को यहाँ ले आओ । उनके बारे में मैंने जो सुना है, वह अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ ।
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कुछ विद्वानों तथा सिपाहियों के साथ मंत्री तुलसी दास जी के पास पहुँचा ।
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उसने गोस्वामी जी से कहा : आप हिन्दुओं के खुदा श्री राम के परम भक्त हैं । बादशाह अकबर आपके करिश्मों को सुनकर बहुत खुश हैं । वे आपसे मुलाकात करना चाहते हैं । आप बादशाह सलामत के शाही मेहमान बनिये ।
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तुलसी दास जी ने सोचा, अंधकार में भटक रहे लोगों को सही दिशा मिले इस हेतु लोकसंत विचरण करते हैं । दिल्ली जाकर मैं भी लोगों को भगवन्नाम की महिमा बताऊँगा ।
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दिल्ली पहुँचने पर अकबर ने उन्हें ऊँचे सिंहासन पर बैठाकर उनका पूजन-सत्कार किया । फिर कहा : मैंने सुना है कि आप खुदा से मुलाकात करते हैं, बात करते हैं । आपने कई करिश्में भी किये हैं ।
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संत तुलसी दास जी बोले : मैं कोई करिश्मा करना नहीं जानता, सब प्रभु की लीला है । मैंने तो बस, खुद को प्रभुचरणों में समर्पित कर दिया है ।
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तुलसी-तुलसी क्या कहो, तुलसी बन की घास ।
कृपा भई रघुनाथ की, हो गये तुलसीदास ।।
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यह सुनकर अकबर उद्विग्न हो के बोला : मुझे भी अपने खुदा के दीदार कराओ, नहीं तो यहाँ से जाने नहीं दिया जायेगा ।
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फिर उसने सिपाहियों को हुक्म दिया : इन्हें कैदखाने में डाल दो । इन पर कडी नजर रखो । जब तक ये कोई करिश्मा नहीं दिखाते, खुदा के दीदार नहीं कराते, तब तक मैं इन्हें असली फकीर नहीं मानूँगा ।
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संत तुलसी दास जी को कैद कर लिया गया । वे शांतचित्त बैठकर श्री हनुमान जी का ध्यान करने लगे ।
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सहसा बंदरों का एक झुंड आकर चारों तरफ उत्पात मचाने लगा । कोई पेड-पौधे उखाड कर इधर-उधर फेंकने लगा तो कोई वस्तुओं को बिखेरने लगा ।
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कई बंदरों ने लोगों के नाक-कान काटने शुरू कर दिये लेकिन जो राम नाम जप रहे थे, उन्हें कुछ नहीं किया । भंडारगृह से अन्न लेकर उन्होंने गरीबों में बाँट दिया ।
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फिर बंदरों का वह झुंड राजमहल के अंदर जहाँ बादशाह की रानियाँ थीं वहाँ गया । उन पर उन्होंने गंदा पानी फेंका । उनके गहने उतार कर गरीबों में बाँट दिये । सभी चीजें बिखेर डालीं ।
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अकबर घबरा गया और तुलसी दास जी से क्षमा माँगते हुए बोला : ऐ औलिया ! मेरी गुस्ताखी माफ कर। मुझे पता नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ । मैंने आपको बहुत तकलीफ पहुँचायी, मैं शर्मिन्दा हूँ ।
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तुलसी दास जी ने कहा : श्री राम जी के दर्शन करना चाहते थे न तुम ?
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जिस प्रकार सूर्योदय के समय सूर्य निकलने से पहले उसकी किरणें आती हैं बाद में सूर्य आता है, उसी प्रकार भगवान श्री राम जी के आने से पहले उनकी सेना आ गयी, श्री राम जी बाद में आयेंगे । तुम पर भगवान ने कृपा की है ।
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अकबर तुलसी दास जी के चरणों में गिरकर बोला : आपके खुदा की शक्ति का मुझे अंदाजा नहीं था । मुझे माफ करें, माफ करें ।
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संत तुलसी दास जी के कारागार से निकलते ही बंदरों का वह समूह अदृश्य हो गया ।
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तुलसी दास जी ने एक वर्ष तक वहीं रहकर दिल्ली वासियों को अपने सत्संग-अमृत का पान कराया.
(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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