श्री राम का जीवन– संवेदना गीत।
काश के श्री राम के नयनों में भी कुछ नीर होता,
काश कि दुनिया उन्हें भी, कुछ समय तो समझ पाती।
काश कैकई क्रूर ना होती जो कुछ पल के लिए तो,
पिता से यूं पुत्र का मिलकर बिछड़ना छूट जाता।
काश दशरथ एक पल रघुकुल की रीति भूल जाते,
यूं विरह में राम के तज प्राण जाना छूट जाता।
किंतु किस को क्या पता घटना के पीछे क्या छिपा है?
यह तो केवल होनी के प्रतिफल का हर पल निर्वहन है।
काश कुछ पल के लिए सोते ना जो यूं अवध वासी,
राम का यूं सरयू के उस पार जाना छूट जाता।
होती ना मोहित सिया यूं स्वर्ण मृग पर जो कभी तो,
राम के विरह में सिया के अश्रु गिरना छूट जाता।
किंतु अगले पल में होगा क्या घटित किसको पता है?
स्वर्ण मृग सिया को मिलेगा या विरह श्री राम जी को।
काश लक्ष्मण जाते ना उस पल सिया को छोड़कर के,
तो दशानन कांपता सीता हरण को सोचकर के।
काश सिया जाती ना रेखा पार कुछ पल के लिए तो,
यूं दशानन का हरण का स्वप्न उस फल टूट जाता।
किंतु पहले से लिखा जो होना आखिर में वही है,
प्रकृति के नियमों का सबको निर्वहन करना यहीं है।
इस नियम से ही तो सीता रेखा के उस पार जाती,
इस नियम से ही दशानन रेखा को न लांघ पाता।
काश उस पल यूं ना लगती शक्ति जाकर के लखन को,
राम के नयनों से उस पल नीर आना छूट जाता।
मान जाता हारकर जिद से स्वयं की जो दशानन,
उसका यूं श्री राम के चरणों में मरना छूट जाता।
किंतु गर श्री राम के हिस्से न आता वन गवन तो,
सबरी को श्री राम के दर्शन का होना छूट जाता।
यूं लिखी जो पट–कथा थी एक रावण के जन्म की,
अन्त उसका राम के हाथों से होना छूट जाता।
काश की श्री राम के नयनों में भी कुछ नीर होता,
काश की दुनिया उन्हें भी कुछ समय तो समझ पाती।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”