श्री राम।
एक जनहित के व्रत को निभाते हुए,
हर घड़ी अश्रु धारा को पीते रहे,
राम फिर अपने दैवत्व को भूलकर,
कष्ट लोगों के हर पल ही सहते रहे।
यूं कठिन राह कोई न चुनता मगर,
सूल की हर चुभन हंसके सहते रहे,
धाम की खोज में रूप मानव का धर,
तीर्थ ही वन में बर्षों भटकते रहे।
यूं स्वयं राम होना कठिन तो नहीं,
राम बनके ठहरना कठिन काम है।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”