श्री राधा !
श्री राधा !
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कृष्ण कन्हैया बसे द्वारिका, ब्रज वसुधा से मुख मोड़ा ।
पर तुमने हे राधे रानी ,नहीं कभी भी ब्रज छोड़ा ।।
यहाँ वास कर ब्रज को तुमने ,अपना धाम बनाया है ।
मन के वृंदावन में तुमने,प्यारा श्याम बसाया है ।।
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ब्रज के कण-कण में राधा ।
जन-जन के मन में राधा ।।
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राधे…राधे …!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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