श्री गणेश जी की अनेक जन्मकथाएं कौन सही-कौन गलत?
इन दिनों देश में गणेशोत्सव का पर्व चल रहा है. बेशकर हमें उत्सव मनाना चाहिए लेकिन हम पर्व क्यों मना रहे हैं, उसका मुख्य ध्येय क्या है, यह भी तो हमें मालूम होना चाहिए. बहुत लोग ऐसे हैं जो कोरोना काल में भी गणेशोत्सव धूमधाम से मना तो रहे लेकिन उनसे जब श्रीगणोश जी के बारे में बात की जाए तो या तो वे भौचक होकर अपना मुंह फाड़ लेते हैं या फिर जानकारी देनेवाले पर ही बौखला उठते हैं. मैंने प्रसंगवश गणेश जी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तो पता चला कि हमारे विभिन्न शास्त्रों में उनके जन्म की अनेक कहानियां हैं. उनमें से कुछ मैं आपसे साझा कर रहा हूं. आप बताइए कि आप इन कथाओं से कहां तक सहमत/असहमत हैं?
पहली कथा :
वराह पुराण के मुताबिक भगवान शिव ने गणोशजी को पचंतत्वों से बनाया है. जब भगवान शिव गणेश जी को बना रहे थे तो उन्होंने उसे विशिष्ट और अत्यंत रूपवान रूप दिया. यह खबर जब देवताओं को मिली तो उन्हें डर सताने लगा कि कहीं ये सबके आकर्षण का केंद्र न बन जाए. इस डर को भगवान शिव भी भांप गए थे तो फिर उन्होंने उनके पेट को बड़ा कर दिया और मुंह हाथी का लगा दिया.
दूसरी कथा :
वहीं शिवपुराण में जो कथा है, वह इससे एकदम अलग है. इसके मुताबिक माता पार्वती ने अपने शरीर पर हल्दी लगाई थी. इसके बाद जब उन्होंने अपने शरीर से हल्दी उबटन उतारी तो उससे उन्होंने एक पुतला बना दिया. बाद में उन्होंने उसमें प्राण डाल दिए. इस तरह से विनायक पैदा हुए थे. इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिए कि तुम मेरे द्वार पर बैठ जाओ और किसी को भी अंदर नहीं आने देना.
कुछ समय बाद शिवजी घर आए तो उन्होंने कहा कि मुङो पार्वती से मिलना है. इस पर गणेश जी ने मना कर दिया. शिवजी को नहीं पता था कि ये कौन है. दोनों में विवाद हो गया और उस विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया. इस दौरान शिवजी ने अपना त्रिशूल निकाला और गणेश का सिर काट डाला.
पार्वती को पता लगा तो वह बाहर आईं और रोने लगीं. उन्होंने शिवजी से कहा कि आपने मेरे बेटा का सिर काट दिया. शिवजी ने पूछा कि ये तुम्हारा बेटा कैसे हो सकता है. इसके बाद पार्वती ने शिवजी को पूरी कथा बताई. शिवजी ने पार्वती को मनाते हुए कहा कि ठीक है मैं इसमें प्राण डाल देता हूं, लेकिन प्राण डालने के लिए एक सिर चाहिए. इस पर उन्होंने गरूड़ जी से कहा कि उत्तर दिशा में जाओ और वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना. गरुड़ जी भटकते रहे पर उन्हें ऐसी कोई मां नहीं मिली क्योंकि हर मां अपने बच्चे की तरफ मुंह कर के सोती है. अंतत: एक हथिनी दिखाई दी. हथिनी का शरीर का प्रकार ऐसा होता है कि वह बच्चे की तरफ मुंह कर के नहीं सो सकती है. गरुड़ जी उस शिशु हाथी का सिर ले आए. भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया. उसमें प्राणों का संचार कर दिया.
तीसरी कथा :
श्री गणेश चालीसा में वर्णित है कि माता पार्वती ने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तप किया. इस तप से प्रसन्न होकर स्वयं श्रीगणेश ब्राह्मण का रूप धर कर पहुंचे और उन्हें यह वरदान दिया कि मां आपको बिना गर्भ धारण किए ही दिव्य और बुद्धिमान पुत्र की प्राप्ति होगी. ऐसा कह कर वे अंतध्र्यान हो गए और पालने में बालक के रूप में आ गए.
चारों लोक में हर्ष छा गया. भगवान शिव और पार्वती ने विशाल उत्सव रखा. हर तरफ से देवी, देवता, सुर, गंधर्व और ऋ षि, मुनि देखने आने लगे. शनि महाराज भी देखने आए. माता पार्वती ने उनसे बालक को चलकर देखने और आशीष का आग्रह किया. शनि महाराज अपनी दृष्टि की वजह से बच्चे को देखने से बच रहे थे. माता पार्वती को बुरा लगा. उन्होंने शनिदेव को उलाहना दिया कि आपको यह उत्सव नहीं भाया, बालक का आगमन भी पसंद नहीं आया. शनि देव सकुचा कर बालक को देखने पहुंचे, लेकिन जैसे ही शनि की किंचित सी दृष्टि बालक पर पड़ी, बालक का सिर आकाश में उड़ गया. उत्सव का माहौल मातम में परिवर्तित हो गया. माता पार्वती व्याकुल हो गई. तुंरत गरुड़ जी को चारों दिशा से उत्तम सिर लाने को कहा गया. गरुड़ जी हाथी का सिर लेकर आए. यह सिर शंकर जी ने बालक के शरीर से जोड़कर प्राण डाले. इस तरह गणेश जी का सिर हाथी का हुआ.
भैया, मेरा तो सिर चकरा गया है. मेरी थोड़ी मदद करें और बताएं कि इन कहानियों में कौन सही है और कौन गलत?
-23/8/2020, रविवार