श्री गणेश वंदना
मात पिता परिक्रमा करके ,सबको पाठ पढ़ाया है ।
पहली पूजा हो गणेश की , ये वरदान भी पाया है ।
सिद्धि विनायक, विघ्न विनाशक ,
लोक लोक को भाते हैं ।
पहले पूजा करने से वो ,
सदा सफलता लाते हैं ।
गौरीनन्दन ,शंकर सुत की , कल्याणमयी काया है ——–
जन गण के ईश्वर हैं गणपति ,
जन की चिंता करते हैं ।
रिद्धि सिद्धि के साथ सदा वो ,
मन की दुविधा हरते हैं ।
सब कुछ सरल सहज जीवन हो ,सबको ये सिखलाया है —
सुबुद्धि से ही गौरव बढ़ता ,
और सम्मान पाते हैं ।
हारे थके बलहीन मनु को ,
विजय मुकुट पहनाते हैं ।
सदमार्ग व चतुराई से , जीवन को महकाया है ——
‘परशु ‘ के परशु को रोका तो ,
एकदन्त कहलाते हैं ।
अपना बल अपना होता है ,
अन्य काम ना आते हैं ।
गर्वहीन खुद के ही बल को ,असली बल बतलाया है —–
शनि दृष्टि दुख कष्ट लाती है ,
झटपट उसे मिटा डाला ।
हस्ति मुख से प्राण जोड़े औ ,
सुख संसार सजा डाला।
खरे ‘ हितैषी ‘ लोक लोक के , जग को खूब लुभाया है—-
पहली पूजा हो गणेश की ये वरदान भी पाया है ।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . )451 551