श्री कृष्ण
श्री कृष्ण (मुक्तक) गीत
मेरे कान्हा, मेरे मोहन, सदा मुरली बजाते हैं
थिरकते प्रेम की धुन में, रास ऐसा रचाते हैं।
नहीं मैं जानती कृष्णा, करूँ क्या मैं तुम्हें अर्पण ।
छिपे हैं भाव जो दिल में, लो करती हूंँ मैं समर्पण।
मैं करती हूँ प्रभु विनती, उसे स्वीकार भी कर लो,
तेरी सूरत ही अब देखूं, निहारूं जब कभी दर्पण।।
मनोहर मुख नयन काले भाव मन में जगाते है,
मेरे कान्हा, मेरे मोहन, सदा मुरली बजाते हैं ।
मैं जग की रीत क्या जानूँ, मैं कोई प्रीत ना जानूँ?
मेरे जीवन खिवइंया तुम, कन्हैया बस तुम्हें मानूँ ।
दरश दे दो मुझे कान्हा कि मेरा मन हुआ व्याकुल,
कि अंखिया भीग न जाएं, तेरी मूरत ही बस ठानूं।
ग्वाल गोपी सभी मिलकर धेनु वन में चराते है,
मेरे कान्हा, मेरे मोहन, सदा मुरली बजाते हैं ।
डगर जीवन की है मुश्किल, पार इसको लगा देना,
सारथी बन के कान्हा तुम सोई किस्मत जगा देना।
करूँ आराधना तेरी, करूँ मैं श्री चरण-वन्दन,
पधारो श्याम- सुंदर तुम, द्वंद मन के भगा देना।
धर्म का ज्ञान शुभ देकर मधुर गीता सुनाते हैं,
मेरे कान्हा, मेरे मोहन, सदा मुरली बजाते हैं ।
©वन्दना नामदेव