श्री कृष्ण
✒️?जीवन की पाठशाला ??️
श्री कृष्ण कहते हैं…
-ञानयोग, भक्तियोग और कर्मयोग में गृहस्थों के लिए सिर्फ कर्मयोग ही सर्वोत्तम है, उसे कर्मयोग पर ही ध्यान देना होता है।
-हर जन्म में शरीर बदलता रहता है। इसलिए अपने शरीर से नहीं आत्मा से प्यार करें।
-सुख-दुख, लाभ-हानि और मान-अपमान में जो सामान रहता है। वही व्यक्ति बुद्धिमान और सच्चा योगी माना गया है।
-अच्छे और बुरे कर्म का फल निश्चित मिलता है। परन्तु यह कब मिलेगा, यह प्रकृति या ईश्वर पर निर्भर करता है।
-मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है तथा अनेक प्रकार के पापों का कारण है। इसलिए मन को वश में करके भक्ति और सद्विचारों को संलग्न करना चाहिए।
-सब जीवों को अपने समान समझना और जीवो के प्रति दया का भाव रखने वाले मनुष्य को श्रेष्ठ योगी माना गया हैं।
-इंसान को मन पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है, जिसने मन नियंत्रित नहीं है, उसके लिए मन ही उसका शत्रु होता है।
-इन सांसारिक वस्तुओं से मोह बेकार है। क्योंकि इस जन्म में यह तुम्हारी और अगले जन्म में किसी और की होगी। इसलिए वस्तुओं से मोह माया नहीं रखना चाहिए।
-जो इंसान अनन्य भाव और भक्ति से केवल मेरा (भगवान) चिंतन करता है और मेरी उपासना करते हैं। उनके सारे कष्टों को मैं स्वयं वहन करता हूँ।
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान