श्री कृष्ण जन्म महोत्सव पञ्चांग
श्री कृष्ण जन्म महोत्सव
हम सभी जानते हैं कि युगपुरुष भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को सूर्योदय से आठ मुहूर्त निकल जाने के बाद रोहिणी नक्षत्र में अष्टमी तिथि को ईसा से लगभग 3112 वर्ष पूर्व (अर्थात आज से 2021+3112=5133 वर्ष पूर्व) हुआ था | अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र से जयन्ती योग बनता ऐसा विद्वानों का कथन है | सौभाग्य से इस वर्ष यही योग पड़ रहा है आज से तीन दिन बाद सोमवार 30 अगस्त को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन | अर्द्धरात्रि में जिस समय भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ वह समय निशीथ काल कहलाता है, और सम्भवतः इसीलिए अभी भी निशीथ काल में ही भगवान श्री कृष्ण के जन्म की पूजा की जाती है |
न तो भगवान श्री कृष्ण ही साधारण व्यक्ति थे और न ही उनका जन्म साधारण परिस्थितियों में हुआ था | साथ ही उनके जन्म से लेकर गोलोकवासी होने तक जीवन भर अनेकों असाधारण घटनाएँ उनके साथ घटित होती रहीं, समाज में घटित होती रहीं,, राजनीतिक पटल पर घटित होती रहीं, जिनमें से अनेकों घटनाओं के विषय में हम सभी ने पढ़ा हुआ भी है | इन्हीं असाधारण घटनाओं, असाधारण ज्ञान, असाधारण राजनीतिज्ञ, असाधारण योद्धा, असाधारण योगी और ज्योतिषी, असाधारण रसिक-प्रेमी, असाधारण कूटनीतिज्ञ तथा अनेकों अन्धविश्वासों और कुरीतियों के विरोध में असाधारण रूप से सफल आन्दोलनों का नेतृत्व करने के ही कारण तो उन्हें षोडश कला सम्पन्न युग पुरुष कहा जाता है | इसलिए उस विषय में कुछ न बोलते हुए, प्रस्तुत है भाद्रपद कृष्ण अष्टमी सोमवार 30 अगस्त के पञ्चांग पर एक दृष्टिपात…
• अष्टमी तिथि का आरम्भ – ¬रविवार 29 अगस्त को रात्रि 11:25 के लगभग कृत्तिका नक्षत्र में
• अष्टमी तिथि समाप्त – सोमवार 30 अगस्त को अर्द्धरात्र्योत्तर दो बजे के लगभग
• 30 अगस्त को सूर्योदय : 5:38 पर
• चन्द्रमा का रोहिणी नक्षत्र पर आरोहण : 6:38 के लगभग और मंगलवार 31 अगस्त को प्रातः 9:43 तक वहीं रहेगा
• सूर्योदय के समय उदित लग्न : सिंह – सूर्य लग्न में
• 30 अगस्त को अभिजित मुहूर्त : प्रातः 11:56 से 12:47 तक
• 30 अगस्त को गोधूलि वेला : सायं 6:32 से 6:56 तक
• 30 अगस्त को निशीथ काल : अर्द्धरात्रि 12 बजे से अर्द्धरात्र्योत्तर 12:44 तक
• करण : बालव / योग : व्याघात
• श्रीकृष्ण जन्म के समय अर्द्धरात्रि 12 बजे : वृषभ लग्न, चन्द्रमा लग्न में
• ग्रह स्थितियाँ : चतुर्थ भाव में चतुर्थेश होगा जिस पर दशम भाव से गुरु की दृष्टि भी रहेगी | भाग्य स्थान में वृषभ लग्न के लिए योगकारक भाग्येश शनि स्वयं गोचर कर रहे हैं | लग्नेश पंचमेश के साथ पञ्चम भाव में ही है |
• करण : कौलव / योग : हर्षण
कहने का अभिप्राय है कि सामान्य रूप से देखा जाए तो यह मुहूर्त और योग जन साधारण के शुभ मुहूर्त बन रहा है | तो माखन चोर षोडश कला सम्पन्न युग पुरुष के संघर्षमय किन्तु महान चरित्र से प्रेरणा प्राप्त करते हुए प्रेम और श्रद्धा पूर्वक श्री कृष्ण जन्म महोत्सव मनाएँ… जो भी साधन उपलब्ध हैं उन्हीं के साथ – क्योंकि निर्धन दीन हीन सुदामा के तीन मुट्ठी तन्दुल खाकर उन्हें समस्त ऐश्वर्य प्रदान कर देने वाले किशन कन्हैया को हम सांसारिक मनुष्य श्रद्धा सुमनों के अतिरिक्त भला और क्या अर्पण कर सकते हैं… तो, आइये मिलकर प्रयास करें कि कुछ अंश ही सही – हम सब भी उनके चरित्र से प्रेरणा प्राप्त करके निस्वार्थ भाव से कर्तव्य कर्म करते हुए धर्म अर्थात कर्तव्य के मार्ग पर चलते हुए अन्याय का नाश और न्याय की रक्षा के संकल्प लेकर निरन्तर प्रगतिशील रहें… सभी को श्री कृष्ण जन्म महोत्सव की अनेकशः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है मधुराष्टकम्…
अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरम् |
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 1 ||
वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरम् |
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 2 ||
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ |
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 3 ||
गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् |
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 4 ||
करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरम् |
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 5 ||
गुञ्जा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीची मधुरा |
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 6 ||
गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् |
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 7 ||
गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा |
दलितं मधुरं फलितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् || 8 ||