श्रीराम स्तुति-वंदन
हे श्रीराम रघुपति,
कौशल्या नन्दन है।
दशरथ घर जन्में,
करै जगत वन्दन है।।
श्रीराम भक्त रक्षक,
संतन के हितकारी है।
आश करै पूरी नित,
करते अर्ज संसारी है।।
ऋषि मुनि राम ध्यावै
भवपार करत है सोई।
ध्यान धरै जो संसारी,
वैसा धन्य और न कोई।।
पूजा तुम्हारी करत,
शिव शंकर त्रिपुरारी।
ब्रह्मा इन्द्र सब ही,
है मन अचरज धारी।।
जय जय श्रीराम,
प्रभुजी दीन दयालु।
रहे सदा ही तुम्हीं,
प्राणीमात्र पे कृपालु।।
श्रीराम भारत माँ के,
तुम्हीं तो हो स्वाभिमान।
श्रीराम दूत कहावै,
महावीर हो श्री हनुमान।।
14वर्ष माँ वचन,
पिता की आज्ञाधारी।
वनवास गये तब,
राक्षसगण जा संहारी।।
श्रीराम सिर मुकुट बंधायो,
सीताजी जाय परणाई।
धनुष तोड़़ जीते,
सीता से वरमाल डलवाई।।
अनाथों के नाथ हो,
करते बेड़ा पार तुम।
वन में अहिल्यातारी,
बन जीवनाधार तुम।।
ऋषि मुनि भेद न पावै,
देव सब राम यश गावै।
ब्रह्मादिक पार न पावै,
संत-भक्त साखी गावै।।
वन वन गये घूमते,
ऋषियों के यज्ञ कराये।
जितने आये राक्षस,
श्रीराम ने थे मार गिराये।।
फिर आई सूरपंखा,
सुंदर औरत बनके थी।
उल्टी रची साजिश,
लक्ष्मण काटी नाक थी।।
खरदूषण त्रिसरा को,
उसने जा मरवाया था।
दूर्दांत राक्षस मराये,
कर्या पूरा सफाया था।।
आखिर गई वो लंका,
रावण भी भरमाया था।
भ्रम में आके रावण,
सीताहरण नै आया था।।
ठगी करी शुरू रावण,
मृग मारीच बनाया था।
श्रीराम की माया थी,
सीता वो हर लाया था।।
जटायु मदद में आया,
उसकी पंख काटी थी।
रिष्यमूक पर्वत पर माँ,
आभूषण नथ फैंकी थी।।
सीता खोज में क्षेत्र में,
आये लक्ष्मण श्रीराम थे।
वहीं भेंटकर दूत बने,
महावीर श्रीहनुमान थे।।
कराई मित्रता सुग्रीव से,
पत्नी उसकी बाली हरली।
श्रीराम ने बाली को मार,
राज सुग्रीव नै पक्की की।।
बजरंगबली हनुमान,
नल, नील और अंगद।
सीता माता खोज में,
वानरों संग जामवन्त।।
बजरंगबली भरी उड़ान,
पहुँचे लंका भक्त खोज।
विभिषण भक्त राम के,
माता सीता लीवी खोज।।
अशोक वाटिका में माँ से,
जा करली भेंट तब थी।
दे मुद्रिका श्रीराम संदेश,
फल खाएं माँ आज्ञा ली।।
बाग उजाड़ा अक्ष्य मारा,
बंध फांस रावण पे आये।
आग लगवाई पूँछ बढ़ाई,
जला लंका राम पे ध्याये।।
पुल बाँध सागर पे राम,
सेना सहित लंका पधारे।
राम-रावण हुआ युद्ध,
राक्षस बड़े राम ने मारे।।
मेघनाद से लक्ष्मण लड़े,
शक्ति से लक्ष्मण मूर्छित।
संजीवनी बूटी लाने को,
हनुमान हुए थे अर्पित।।
संजीवनी ला लखन बचाए,
युद्धभूमि में पुनः आए थे।
लड़े स्तर्कता से लखन-राम,
रावण-मेघनाद मार गिराये थै।।
रा्वण मार सीता लाये,
पुष्पक से अयोध्या आये।
भरतजी अयोध्या राज,
राम खड़ाऊ से करते पाये।।
राम भरत लक्ष्मण,
शत्रुघ्न मिले चारों भाई।
बने श्रीराम राजा,
बंटी घर-घर थी बधाई।।
पृथ्वीसिंह’ ने श्रीराम,
की महिमा रचना बनाई।
श्रीराम स्तुति प्रणाम,
कृपा श्रीराम की है पाई।।